मैं लिखते लिखते रोया हूँ
धरती अम्बर रोया है, चीख चीखकर रोया है।
भारत मां का छोटा जुगनू, आज कही फिर खोया हैं।।
नन्ही सी आशाओं मे, सब अपने दफन हुए होंगे।
छोटी छोटी आँखों के, सब सपने दफन हुए होंगे।।
बच्ची की लाश पड़ी, पत्थर से कुचली गुड़िया थी।
जख्मों पर हवस लिखा, पंजों में उलझी चुटिया थी।।
बहशी दरिंदो के हाथों से बच्चे हुए, खिलौने थे।
शब्दों में क्या बतलाऊ, कत्य कितने घिनौने थे।।
टविंकल के हत्यारों को अब फासीं पर लटका दो।
तन नोचने वाले का तन गिद्धों में अब बटवा दो।।
पर आज मुझे एक बात बोलनी भारत के कथित विद्वानों से।
जिस्म नुमाइश करने वाले बॉलीवुड के खानों से।।
कल जो न्याय मांग रहे थे, चीखे थे दरबारों में।
हाथों में मोम लेके, जो घूमे थे बाजारों में।।
दर्शक आज क्यों बने हुये है, जो न्याय दिलाने वाले हैं।
सब के सब मौन खड़े है, सबके मूहं पर ताले है।।
70 सालों से उठी नहीं, ये बात तुम्हारी फर्जी है।
हिन्दू ही सिर्फ निशाना है, कितनी घातक खुदगर्जी हैं।
कहे कवि विशाल अब, इन पर भी वार जरुरी हैं।
हत्या के ये भी दोषी है, इनका उपचार जरुरी हैं।।
#JusticeForTwinkle
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