Vishal Bagh   (Vishal Bagh)
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Poetry
Joined 4 January 2018


Poetry
Joined 4 January 2018
27 OCT 2020 AT 0:49

फूल की बेरुख़ी से तंग तितली
एक कांटे पे जा के बैठ गई!!

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18 OCT 2020 AT 23:27

मिट्टी के गुलदान बनाने वाले सुन
मिट्टी में तो फूल उगाए जाते हैं

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12 OCT 2020 AT 23:33

तुमने जब से अपनी पलकों पर रक्खा
कालिख को सब काजल-काजल कहते हैं!!

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28 SEP 2020 AT 12:10

एक सांवली लड़की के नाम!

एक हरा पेड़
एक तपता लाल सूरज
मिलकर जो बनाते हैं
उसी छांव के रंग की हो तुम!

माफ़ करना ऐ छांव सी लड़की
बात का हमको ढंग है ही नहीं
सांवला कोई रंग है ही नहीं!

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8 OCT 2020 AT 17:05

तेरे मुंह फेरने की देर थी बस
उदासी लौट आई शायरी में!

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30 SEP 2020 AT 22:22

"दबोच लेना", "पर कतर देना" , "पर नोच लेना" , "कुचल देना" , "आंखें निकाल लेना" , "कमर तोड़ देना" ! मैं अक्सर सोचता हूं कि ऐसे मुहावरे क्यों बने होंगे? भाषा हमारे इंसान बन जाने के बाद बनी है। तो भाषा में इन मुहावरों का होना शायद यही बताता है कि हमने अपने अंदर के जानवर को मौका मिल पाने तक के लिए सिर्फ़ टाल दिया होगा।
हमारे अंदर का जानवर ही हमारा सच है, हमारा इंसान एक टेम्पररी अरेंजमेंट है!!

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29 SEP 2020 AT 21:24

सब ने देखा है कल ये महफ़िल में
तुमने मेरी तरफ नहीं देखा

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27 SEP 2020 AT 23:40

किसी ने फिर हमें अपना न जाना
हम इस दर्जा तुम्हारे हो गए थे

Kisi ne phir hamein apna na jana
Hum is darja tumhare ho gaye the

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27 SEP 2020 AT 19:00

सब ने देखा है कल ये महफ़िल में
तुमने मेरी तरफ नहीं देखा!!

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4 JAN 2018 AT 18:17

Danishmando rastaa batla sakte ho
Diwanaa hoon veraane tak jana hai

दानिशमन्दो! रस्ता बतला सक्ते हो
दीवाना हूँ वीराने तक जाना है

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