फूल की बेरुख़ी से तंग तितली
एक कांटे पे जा के बैठ गई!!-
एक सांवली लड़की के नाम!
एक हरा पेड़
एक तपता लाल सूरज
मिलकर जो बनाते हैं
उसी छांव के रंग की हो तुम!
माफ़ करना ऐ छांव सी लड़की
बात का हमको ढंग है ही नहीं
सांवला कोई रंग है ही नहीं!-
"दबोच लेना", "पर कतर देना" , "पर नोच लेना" , "कुचल देना" , "आंखें निकाल लेना" , "कमर तोड़ देना" ! मैं अक्सर सोचता हूं कि ऐसे मुहावरे क्यों बने होंगे? भाषा हमारे इंसान बन जाने के बाद बनी है। तो भाषा में इन मुहावरों का होना शायद यही बताता है कि हमने अपने अंदर के जानवर को मौका मिल पाने तक के लिए सिर्फ़ टाल दिया होगा।
हमारे अंदर का जानवर ही हमारा सच है, हमारा इंसान एक टेम्पररी अरेंजमेंट है!!-
किसी ने फिर हमें अपना न जाना
हम इस दर्जा तुम्हारे हो गए थे
Kisi ne phir hamein apna na jana
Hum is darja tumhare ho gaye the-
Danishmando rastaa batla sakte ho
Diwanaa hoon veraane tak jana hai
दानिशमन्दो! रस्ता बतला सक्ते हो
दीवाना हूँ वीराने तक जाना है-