आज बैठकर तन्हा, ये सोचते रहे है हम,
क्या पा रहे है आज, क्या खो चुके है हम,
मोहब्बत हासिल है हमें, पूरा परिवार हासिल है,
इस मोहब्बत के सिवा, और क्या ढूंढे जा रहे है हम?
मन विचलित भी क्यों है, इसकी खबर नहीं मुझे,
खुद से नाराज़गी क्यों है, ये पता लगा रहे है हम,
अपनी मंजिल से वाकिफ़ है, राहें सब याद है मुझे,
मगर ना जाने कैसे हर रोज़, रास्ते भटक जा रहे है हम,
इन सारे सवालों में अब उलझते जा रहे है हम,
क्या पता कहां भटके है, ना खुद को वापस पा रहे है हम,
क्या ज़िंदगी इतनी ही थी? बस जिए जा रहे है हम।
क्या खो चुके है अब और क्या पा रहे है हम?
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