इतना मुश्किल इतना मुश्किल कहते कहते
हमने इश्क़ किया औ' किया मुकम्मल पूरा-
फिर तो पसंद आऊंगा तुम्हें !
• घोल दी है स्याही जिंदगी में उसने
ये लिख... read more
खाली सीढ़ी पर बैठा हूं खाली मैं
खुद पर ही मैं बजा रहा हूं ताली मैं
मेरे आगे मार दिया है पंछी उसने
अब मुझको लगता है मैं हूं जा'ली मैं
उसके चक्कर में बन बैठा सीधा सा
इससे अच्छा तो था यार मवाली मैं
उसकी आँखों से पीने की शर्त मिरी
पी जाऊंगा फिर सब गिनकर प्याली मैं
उसकी औ' मेरी इक दिन होगी शादी
इससे ज़्यादा हो सकता हूं ख़याली मैं ?-
कभी मैं शेर कहता हूं कभी गज़लें बनाता हूं
सुखनवर मैं हूं मुफलिस सो उसे ऐसे मनाता हूं
हूं घर के हाल से वाक़िफ सो रोटी को नहीं कहता
मगर जब हद से बाहर हो तो बरतन खनखनाता हूं— % &-
गुलाबों से फरेबी आशिकों के है कहीं प्यारा
सजा वो मोगरे का गुल किसी गजरे में जानां के— % &-
मुसीबत का थमा है हाथ ऐसे तो पले हैं हम
ज़माना लग गया है तब कहीं जाकर ढले हैं हम— % &-
हूर है तो काम धंधा छोड़ दें हम देखकर के
यार वो तो हूर है हम को तो रोटी चाहिये ना— % &-
हद में रहकर काम नहीं चलने वाला
सर्कस में रहकर शेर नहीं पलने वाला
तुमने गलती की है जुल्फें लहराकर
अब तो ये तूफान नहीं टलने वाला
घर को रौशन करना है तो उठो मियां
बिना जलाए दिया नहीं जलने वाला
जब तक देख नहीं लूंगा मैं चेहरा तेरा
आसमान में चांद नहीं ढलने वाला
हम तो गए हैं खूब सताए इश्क़ में जी
अब तो कोई ज़ुल्म नहीं खलने वाला— % &-