विरंचि   (Zefinity | زفنتے)
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Joined 31 July 2021


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Joined 31 July 2021
29 APR 2022 AT 8:42

इतना मुश्किल इतना मुश्किल कहते कहते
हमने इश्क़ किया औ' किया मुकम्मल पूरा

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11 APR 2022 AT 18:02

'मुझको जाना है' कह देना पड़ता है
जब वो पल पल भर में घड़ी में देखे तो !

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3 APR 2022 AT 16:17

खाली सीढ़ी पर बैठा हूं खाली मैं
खुद पर ही मैं बजा रहा हूं ताली मैं

मेरे आगे मार दिया है पंछी उसने
अब मुझको लगता है मैं हूं जा'ली मैं

उसके चक्कर में बन बैठा सीधा सा
इससे अच्छा तो था यार मवाली मैं

उसकी आँखों से पीने की शर्त मिरी
पी जाऊंगा फिर सब गिनकर प्याली मैं

उसकी औ' मेरी इक दिन होगी शादी
इससे ज़्यादा हो सकता हूं ख़याली मैं ?

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9 FEB 2022 AT 15:53

कभी मैं शेर कहता हूं कभी गज़लें बनाता हूं
सुखनवर मैं हूं मुफलिस सो उसे ऐसे मनाता हूं

हूं घर के हाल से वाक़िफ सो रोटी को नहीं कहता
मगर जब हद से बाहर हो तो बरतन खनखनाता हूं— % &

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7 FEB 2022 AT 18:44

गुलाबों से फरेबी आशिकों के है कहीं प्यारा
सजा वो मोगरे का गुल किसी गजरे में जानां के— % &

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7 FEB 2022 AT 13:26

Le single me to couple :
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6 FEB 2022 AT 13:40

मुसीबत का थमा है हाथ ऐसे तो पले हैं हम
ज़माना लग गया है तब कहीं जाकर ढले हैं हम— % &

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5 FEB 2022 AT 11:13

बहर में लिखना नहीं आया कभी
बांध सकता है हवा को क्या बशर ?— % &

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4 FEB 2022 AT 14:33

हूर है तो काम धंधा छोड़ दें हम देखकर के
यार वो तो हूर है हम को तो रोटी चाहिये ना— % &

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4 FEB 2022 AT 9:21

हद में रहकर काम नहीं चलने वाला
सर्कस में रहकर शेर नहीं पलने वाला

तुमने गलती की है जुल्फें लहराकर
अब तो ये तूफान नहीं टलने वाला

घर को रौशन करना है तो उठो मियां
बिना जलाए दिया नहीं जलने वाला

जब तक देख नहीं लूंगा मैं चेहरा तेरा
आसमान में चांद नहीं ढलने वाला

हम तो गए हैं खूब सताए इश्क़ में जी
अब तो कोई ज़ुल्म नहीं खलने वाला— % &

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