ऐ दिल-ए-नादान, ग़लतफ़हमियां कैसी कैसी पाल लेता है तु। ख़ुद लड़खड़ाकर भी, कितने गिरते हुओं को सम्भाल लेता है तु। यूं ना रख फ़ितरत दिलदार तु, यूं ना बन सब का ख़िदमतगार तु, अंधेरों की स्याह सी, ग़लियों से भी धार उजाले की निकाल लेता है तु। ऐ दिल-ए-नादान, ग़लतफ़हमियां कैसी कैसी पाल लेता है तु।
उलझ उलझ कर सुलझती है यह, सुलझ सुलझ कर उलझती है यह, अटखेलियों में यह एक अटखेली है, कैसी आख़िर यह ज़िन्दगी एक पहेली है। विस्मयकारी बहुत इसका रहस्य है, फ़िर भी आंखों समक्ष जो सर्वत्र है, जो ना धरे हठ इसे सुलझाने का, उस आनंदमय मन की यह सहेली है।
That is devoid of an, Institutional framework, Wherein the restrictions, Of any nature, Imposed upon sections of, The general public, Do not surreptitiously, Work towards the profit, and, Power-mongering for a select few...
अनकही जो थी दिल में, कहने जा रहें हैं, चुप होने में थोड़ा तो वक्त लग ही जाएगा। सपने में जो निसर्ग रहा है, वहीं रहने जा रहें हैं, लौट कर आने में थोड़ा तो वक्त लग ही जाएगा। बहरूपियों के हुजूम में, अतरंगी से जो दिख रहें हैं, पहचान बनाने में थोड़ा तो वक्त लग ही जाएगा। ज़िन्दगी के एक अरसे बाद, ज़िन्दगी को लिख रहें हैं, अफसाना सुनाने में थोड़ा तो वक्त लग ही जाएगा।
The day. The day that's about to follow. Another day of dreams, hopes and aspirations. And some struggles. Another day wherein I'd strive, To clear the confusion or, Maybe get more entwined in it. But it's late night and, I want to write about the day.