Virag R. Dhulia   (Virag R. Dhulia)
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Joined 7 June 2017


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13 OCT AT 18:52

जब पूरे दिन की यादों पर कोहरा सा छाया था,
जब आती हुई अंधेरी रात का फैलता साया था।
जब आगे के सफ़र की जानिब हश्र से ग़ाफ़िल 'विराग'
के हक़ में था तो बस कुछ इरादों का सरमाया था,
तब एक शाम ऐसी भी थी कि मैं चौखट पर था,
मगर दरवाज़े पर दस्तक देने कोई भी नहीं आया था।

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13 OCT AT 12:18

हम मांझी, सब अपनी अपनी कश्ती के,
सब की अपनी नदी है, सब रमे अपनी मस्ती में।

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8 OCT AT 21:14

Why do these sights seem so unfamiliar and yet the roads so familiar? Must be someone like me passed from here before me.

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8 OCT AT 17:14

When you pay to the Govt for earning money, spending that money, keeping that money, borrowing money....

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6 OCT AT 19:31

एक ऐसा आयाम जहां अगले मोड़ की फ़िक्र ही ना हो।

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5 OCT AT 0:41

जिसकेे बारे में सोच कर, मैं सिहर गया,
वो तो महज़ एक वक्त था, वो गुज़र गया।
अभी तो यहीं था, पर अब किधर गया,
फ़िर लगता है कि वहीं रहे, जिधर गया।
ओझल मेरी आंखों से, इस कदर वो मंज़र गया,
जिसका ब्योरा छपा था ज़हन में, वो मुख्तसर गया।
ख़ुमारी थी जिसकी आंखों में, नज़रों से वो उतर गया,
वो तो महज़ एक वक्त था, वो गुज़र गया।

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4 OCT AT 19:23

एक अवर्णनीय आभास जहां हम,
अंतर्मन के संशय बेझिझक खोल सकें...

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2 OCT AT 17:12

Your bestie comes back yelling -
"Your advice didn't work!!!"

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1 OCT AT 19:56

सुनो, दुनिया के शोरगुल में,
अक्सर ऐसा होगा कि,
भीतर तुम्हारे कुछ टूटेगा,
दामन हाथों से छूटेगा।
तब बस तुम घबराना नहीं,
आंखें मूंदने से कतराना नहीं।
ग़लती से भी डगमगाना नहीं।

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28 SEP AT 19:44

Often I have wondered and pondered of wandering off,
But where to?
For, I can go anywhere,
That isn't the question.
The question is, a place devoid of you within me,
If it exists or not?

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