वो जो तुम्हें दिख रहा ढलता सूरज,ढला नहीं है
एक लडका है खुली किताबों में,कई रातों से सोया नहीं है
हर नजराना बना नहीं हर किसी की नजर के लिए,
कुछ सिमट गए कमरों में कुछ का चांद निकला नहीं है
-
पंक्ति परिवर्तन की
ना धन,तन,मन और ना ही घर के द्वार से
सांसो की डोर बंधी है,प्रीतम के प्यार से
पड़ता हो थप्पड़ तो क्यों ही बर्दाश्त कीजिए
मेरे हूजूर इधर आइए जीना हो तो तलाक लीजिए-
बिना रकीब के इश्क़ का मज़ा ही क्या,
हर बूंद के सायें में दरख़्त हो वो बारिश क्या
तुम्हें जाना है तो जाओ पर लौटकर आना,ऐ मुसाफिर
सिर्फ एक शख्स तुमसे मोहब्बत करें,यह हकीर नहीं
तुम्हारे चेहरे पर नूर तो है या है नजरों का फलसफा यहाँ-
जिस दिन.....
शमशान घाट गाँव के बीच में होंगे,
धार्मिक स्थल गाँव से बाहर बनेंगे
उस क्षण हम दुख-सुख,अर्थ,काम,लालसा
जैसी चीजें सिर्फ माथा चुमने के लिए होंगी
मृत्यु को ढकने से हम खुशी की तरफ नहीं जाते
संसार का प्रेम में डूबा रहना ही मोक्ष दिलाता है-
"गांव में दवा''
रूतबा-ए-जीवन,अदब से जिंदगी नहीं मिलती
शहर में हवा तो गांव में दवा नहीं मिलती
वो बंद ख्याल अच्छा नहीं,उसे उडने दो
यहाँ हर चिड़िया को जिंदगी नहीं मिलती
जाना अच्छा है,जाने वाले को रोको नहीं
सावन की वर्षा बंद दरवाजे से नहीं मिलती
एक फटी चादर का ठिकाना बुढ़ा शरीर था
अब वो खाट उस चौखट पर नहीं मिलती
फकीर की कहानी में सूकून रातें नहीं मिलती,
शहर में हवा तो गांव में दवा नहीं मिलती
-
सर्वोदय में सब हुआ पर हुआ उदय ना किसान का,
जाकर देखलो तीसरे खेत में शव पड़ा मेहतराम का
-
जंजीर बढा कर यूँ पिंजरे में डाले जायेंगे,
आज किसान मरे है,कल मजदूर मारे जाऐंगे
अरसे बाद आंखें लाल हूई है लाश देखकर,
अब इंकलाब की फिजा में गीत गाये जाऐंगे
जम्हूरियत का वचन था शपथ लेते शख्स में,
हम नहीं जानते थे आईन के पन्ने यूँ फाडे़ जाऐंगे
आंखें घुम जाती है इन सभी पेट भरे इंसानों की ,
सत्ता के नमक से अब रोटी को धोखे दिये जाऐंगे
हर दरख्त की छांव से पत्ता उठाकर किसान लिखो,
यह मालूम है कि कल अन्नदाता नहीं बख्शे जाऐंगे
-
वो शोर ना आया मृत्यु सज्जा से,
हर पल दे आया वीर उस नैया में
कईं ख्वाहिशें त्यागी भरी तरूणाई में
जब हुए अलविदा मतवाले फांसी शैया से
पलटी काया,कुछ संघर्षों का यूँ आगाज हुआ,
एक बूढ़े के डंडे से हर साम्राज्य यूँ खाक हुआ
फिर तुर्की ढहे और अंग्रेज़ों के बंद मकान हुए,
जब कई अलबेले भगत और आजाद हुए
आबाद परिंदे जैसा अपने भारत का निर्माण हुआ,
एक बदहाली से निकलकर चारों ओर गुणगान हुआ
कभी रातों तो कभी भौरों में रोया भारत अपने हालों में,
चलो अब आगे की ओर कि एक नये भारत का प्रस्थान हुआ-
कभी कभी इन्कार से उन्हें सूकून मिला,
सूखे होटों में अदब,नजरों में कातिल मिला
मोहब्बत से क्या गिला यार की रूमानी में,
उस आशिक का इश्क़ क्या जो जिस्म से मिला
-