कल होती रही बरसात देर तक
जाने क्या हुई फ़िर बात देर तक
कहीं से फ़िर आ गई याद तुम्हारी
फ़िर तो ठहरी रही थी रात देर तक
सारे काम धाम भूल कर हम
लेकर बैठे रहे जज़्बात देर तक
जो एक लम्हा दे न सका अपना
करनी थी उनसे मुलाकात देर तक
लहरों ने साज़िश करके डुबोया हमें
देने वाले देते रहे खै़रात देर तक
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