VIPIN LAKHERA   (अलंkar)
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Joined 31 December 2018


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14 MAR AT 22:01

फिर अनकही, अधूरी सी , बात हो गई,
मुद्दतों बाद, खुद से मुलाकात हो गई।

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6 SEP 2023 AT 8:24

शिक्षक वो हैं जो जीवन का, पाठ पढ़ाया करते हैं,
अ से ज्ञ और शून्य से सौ का, भान कराया करते हैं।
टूटी फूटी डंडी जोड़ी, अक्षर-अक्षर बना दिया,
एक-एक अक्षर से, वो अनंत का, ज्ञान कराया करते हैं।।

आज आसमां-सूर्य-चंद्रमा, तारे हमनें नाप लिए,
अंटार्कटिका की बर्फ-समंदर, की गहराई झांक लिए।
दुनिया को मुट्ठी में भरने, का दम जिनके कारण है,
स्वाभिमान से जग में शासन, करते हम जिनके कारण हैं।
जिनकी ज्ञान लालिमा से, ज्ञान पुंज जल जाता है,
जलकर खुद उज्जवल जग करता, वो शिक्षक कहलाता है।।
ज्ञान की ज्योत जलाकर सबका, मान बढ़ाया करते हैं,
शिक्षक उत्तम जीवन का हमें, पाठ पढ़ाया करते हैं।।

अनुशासन से शिक्षक ने, संयम का पाठ पढ़ाया है,
आपदाओं से लोहा लेने, लायक हमें बनाया है।
सही गलत का भेद सिखाया, बाधाओं से हमें बचाया,
प्रणाम करो उन शिक्षकों को, जिनने जीना हमें सिखाया।।

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5 FEB 2023 AT 16:28


अंधेरी रात में भी दर-ब-दर, भागता हूं मैं,
सभी सोते हैं गहरी नींद में, पर जागता हूं मैं।

आशिक मंजिलों का हूं, नींद क्या ही बिगाड़ेगी?
खुली आंखों से अक्सर मंजिलों को, ताकता हूं मैं।

रुपहली छांव, चांदनी रात, मुझे उतने ही प्यारे हैं,
मगर गहराइयों में जा के, खुद को आंकता हूं मैं।

शोला एक भड़क उट्ठा है दिल में, क्या करूं?
कभी बाहर-कभी अंदर, सर-ब-सर झांकता हूं मैं।

मुफलिसी से, लाचारी से, फटी हैं चादरें तन की,
हौसलों और उम्मीदों से, तन को ढांकता हूं मैं।

सही है हिज्र है मुझसे, सफलता की मगर सुन लो,
सुराख उस आसमां में करने का, माद्दा राखता हूं मैं।।

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24 AUG 2022 AT 12:31

हम जरा सा क्या ठहर गए...

हम जरा सा क्या ठहर गए, आप बढ़कर चल दिए,
पग बिखेरे पुष्प थे पर, आप चढ़कर चल दिए।।

हम ठिठककर देखते, तुम लौटकर फिर आओगे,
क्या पता था नव अहम के, भाव से घिर जाओगे।
हां निरंतर पथ में चलकर, आगे बढ़ जाना सही है,
पर जो पीछे छूट जाएं, साथ लाना क्या नहीं है?
आगे जाने की ललक में, दूरियां ही गढ़ दिए
हम जरा सा क्या ठहर गए, आप बढ़कर चल दिए।।

जिंदगी लंबा सफर है, बैर से न द्वेष से,
साथ में बढ़ते रहो सब, बंधुता के वेश से।
हमने पिछड़ों को बढ़ाया, तुम हमे भी ले चलो,
तेज चलने के लिए, हमको ही तुम ना छलो।
उलझी हुई थी जिंदगी तो, हमने ही थे हल दिए,
हम जरा सा क्या ठहर गए, आप बढ़कर चल दिए।।

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16 APR 2022 AT 17:58

Vipin

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16 APR 2022 AT 13:25

अकेला था भटका में राहों में दिल की,
मुहब्बत का मुझ पर, चढ़ा रंग ऐसा।
ये भूला सा, भटका सा, खोया सा दिल था,
दुशाला सा ओढ़े, हुआ बेढंग कैसा।।

थी रंगों की दुनिया, था भंवरों का मेला,
वो कश्ती फंसी थी, मैं डूबा अकेला।
कोई आसरा था, कोई था बवंडर,
किसी ने सम्हाला, किसी ने धकेला।
दिवास्वप्न सा स्वप्न, हुआ भंग ऐसा,
मुहब्बत का मुझ पर, चढ़ा रंग कैसा।।

न रिश्ते न नाते न घरबार की सुध,
जो खोलूं मैं आंखें, लगे बस वही धुन।
न दिन का पता, न ही कटती हैं रातें,
न लगता बुरा कुछ, न अच्छा लगे कुछ।
सफर बस सफर इश्क के संग जैसा,
मुहब्बत का मुझ पर, चढ़ा रंग ऐसा।।

भरी धूप तो ठंड, बरसात भारी,
है देखी जहन में, गजब बेकरारी।
घड़ी की ये टक-टक, घड़ियां प्रहर की,
सभी को लगे कम, मुझे ढेर सारी।
सही कहते हैं इश्क, है जंग जैसा
मुहब्बत का मुझ पर, चढ़ा रंग ऐसा।।

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11 APR 2022 AT 22:16

🙍
मुश्किलें हैं, मुसीबतें हैं, कांटे बहुत हैं,
दिन का पता नहीं, मेरी राहों में रातें बहुत हैं।

वो शख्स जिसके सामने, ये लब नहीं खुलते
कुछ कह नहीं पाते मगर, बातें बहुत हैं।

समंदर है मगर, आंखों से झर नहीं पाता
सुर्ख आंखों में अनकही, बरसातें बहुत हैं।

लगाते हैं कई गोते, उजालों में मगर अपनी,
राहों में अंधेरों की, सौगातें बहुत हैं।

कहकहों के दिखावे हम, करें भी क्या करें बोलो,
ह्रदय में, कंठ में, अश्कों की बरातें बहुत हैं।

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11 APR 2022 AT 21:21

धोती कुर्ता पजामा पहिन के, तैयार बैठे हैं,
दारू और चखना लिए, चार यार बैठे हैं।

एक गोपचा पकड़ लिए हैं, दवाई खातिर
कोई आ न जाए देखो, होशियार बैठे हैं।

बिहार, गुजरात में शराबबंदी है, क्या हुआ?
पीना है, तो सरहद के उस पार बैठे हैं।

लिए हैं अपनी अपनी खुराक भरपूर,
अब देखो ठसक से, असरदार बैठे हैं।

नाहक ही बदनाम करते हैं, लोग शराबी को
ये वो हैं जो समाए अपने में, पूरा संसार बैठे हैं।

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28 MAR 2022 AT 8:31

ताकता हूं
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सुर्ख होठों से, आंखों तलक ताकता हूं,
तुम जो मिलो, एकटक ताकता हूं।

पलकें खुलें और पलकें झुकें जो,
शर्म-ओ-हया की, झलक ताकता हूं।

खामोशी रहे न लबों पे तुम्हारे
चलती जुबां की , बकबक ताकता हूं।

दीदार को दिल, मचलता बहुत है,
मोहब्बत की ऐसी, ललक ताकता हूं।

अपना-पराया नहीं भेद कोई,
मैं अपना समझ कर, हक ताकता हूं।

पूछो कभी क्या तुम, ताकते हो ?
हां मैं कहूं, बेशक ताकता हूं।।

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9 MAR 2022 AT 22:11

हाथी के आगे चींटी पर,
नतमस्तक क्योंकर हो जाऊं,
अंतिम स्वांसों तक युद्ध करूं,
क्यों गुमनामी में खो जाऊं।

रग-रग में बसी है मातृभक्ति
और आजादी की अभिलाषा,
मैं वरण करूं मृत्यु का कदाचित
वीरश्री की परिभाषा,
बन अग्निचिता पर सो जाऊं,
क्यों गुमनामी में खो जाऊं?

निःशस्त्र विश्व का स्वप्न लिया
बोलो क्या ही था गलत किया,
निज स्वार्थ, सनक, विस्तारवाद में,
युद्ध मुझी पर थोप दिया।
अफगान नहीं कायर हो जाऊं,
क्यों गुमनामी में खो जाऊं?

चाहे दंभी बर्बाद करे
मानवता पर आघात करे
अस्मिता की खातिर झुका नहीं
सारी दुनिया ये याद करे।
कमजोरों की ढाल बन
दुनिया का आइना हो जाऊं,
अंतिम स्वांसों तक युद्ध करूं
क्यों गुमनामी में खो जाऊं??

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