सामाजिक ताने बाने को, तोड़ रहे हैं नेता जी,
ध्रुवीकरण को अपने हक़ में,मोड़ रहे हैं नेता जी।
बात न करते रोजगार अरु घोटाले मँहगाई पर,
भरे पोटली फिर वादों की, दौड़ रहे हैं नेता जी।
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-विनोद "साँवरिया"-
प्रेम का एक मुक्तक|
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तुम्हें छोड़कर कर अब नहीं जायेंगे हम|
प्रिये दिल दुःखाकर नहीं जायेंगे हम|
मुहब्बत है तुमसे सियासत नहीं ये,
कि झोला उठाकर नहीं जायेंगे हम|
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विनोद "साँवरिया"-
किस विरही को मिल गयी,पुनः प्रेम में घात|
जिसके सँग बरसा यहाँ, बादल सारी रात|
हुए सब अरमाँ घायल|
बहा आँखों से काजल|
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- विनोद साँवरिया
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मनमीत मुहब्बत की,बस यही कहानी है|
हँसती हुई आँखों में, अश्कों की रवानी है|
अंजाम-ए-मुहब्बत तो सबको है पता फिर भी,
हर कोई बहकता है, ये दौर-ए-जवानी है|
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© विनोद साँवरिया-
मन में अपनी आजादी का हर पल ही अभिमान रहे|
और तिरंगे की इस जग में, आन बान और शान रहे|
भाल भारती माँ का ऊँचा,रहे हमेशा इस जग में|
रहें कहीं भी मगर दिलों में,केवल हिन्दुस्तान रहे|
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- विनोद साँवरिया-
मुख मोड़ गये हो तो,फरियाद नहीं करना|
तुम वक्त प्रतीक्षा में,बरबाद नहीं करना|
प्रतिबिम्ब नहीं बनता,टूटे हुए दर्पण में,
इसलिए कभी मुझको,अब याद नहीं करना|
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- विनोद साँवरिया-
द्वेष की दुन्दुभी बज रही हर तरफ|
बिक रहा हर तरफ झूठ का आवरण|
किन्तु बागी ये मन शान्त रहता नहीं,
लेखनी लिख रही सत्य का आचरण|
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- विनोद साँवरिया-
स्वयं को शोख नजरों से,बचाना कौन चाहता है|
प्रणय पथ के मगर काँटे,उठाना कौन चाहता है|
बहुत आसान है दिल में,किसी की चाहतें रखना,
मुहब्बत जिन्दगी भर को,निभाना कौन चाहता है|
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- विनोद साँवरिया-
बिजली अब करने लगी, सपनों पर आघात|
नित्य प्रतीक्षा में कटे, सारी सारी रात|
वादों पर उगने लगी, पुनः मखमली घास|
यूपी में मिलने लगा, शिमला का आभास|
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- विनोद साँवरिया-
बड़ी गजब लाजारगी, झेल रहा पाखण्ड|
लहसुन है तो व्यर्थ में, नींबू करे घमण्ड|
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- विनोद साँवरिया-