मैं जमीं को बुलाऊँगा, आसमान आएगा,
मेरी मेहनत के पास चलकर ख़ुद मुकाम आएगा,
मेरी कामयाबी इतना शोर मचाएगी,
इतिहास के पन्नों पर हर बार मेरा परिणाम आएगा...-
अब उससे बात नहीं होती,
रोज मुलाकात नही होती,
दर्द बहुत हैं जज्बातों में,
अगर वो होती तो,
जिंदगी अज्ञात नही होती,...-
न वो कभी बोल पाई,
न मैं कभी बोल पाया,
रिश्ता समझा न सका,
न मैं समझ पाया...
सब अच्छा चल रहा था,
पर वक़्त का दौर ऐसा आया,
ग़ुरूर ए इश्क़ फिर
किसी को रास न आया,
लफ़्ज़ों का परिणाम,
दोनों के विरोध में आया,
वो मुझे न मिल पायी,
मैं उसे ना मिल पाया...-
अचानक उठा तो देखा,
कमरे में माँ नही है,
आंगन देखा,किचन देखा,
मेरे जीने की वजह नही है...
उदासी चारों तरफ है,
हँसने की वजह नही है....
वो माँ की मधुर आवाज,
फिजाओं में एहसास नही है....
आँसू भी नही आ रहे,
उसे मेरी चौखट का पता नही है...
भयावह मंज़र दिख रहा है,
अस्पताल का पता नही है...
अचानक उठा तो देखा,
कमरे में माँ नही है,
मेरे जीने की वजह नही है...-
वो हवाओं से लड़कर
बड़े-बड़े पहाड़ों को हराता है,
लहरों को थाम कर,
मंज़िल को करीब ले आता है,
मैदान पर डटे रहकर,
140 करोड़ लोगो के दिलों मे बस जाता है,
तब जाकर कोई कोहली, विराट कहलाता है....-
सो गए जुगनू और अंधकार हो गया,
आज के अख़बार में फिर बलात्कार हो गया,
तो कल का है ये वृत्तांत,
जो आज का मुख्य समाचार हो गया,
राह चल रही अपनी आरजू लिए,
एक स्त्री पर फिर प्रहार हो गया,
भरे बाजार में अत्याचार हो गया,
ये पूरा समाज गुनेहगार हो गया,
उसके ख्वाबों का संहार हो गया,
एक स्त्री का देह व्यापार हो गया,
वो दरिंदा इंसान के रूप में गद्दार हो गया,
कोई बाप आज फिर शर्मशार हो गया,
उसकी चीख का नाम गुहार हो गया,
जैसे कोई टूटा हुआ सितार हो गया,
सो गए जुगनू और अंधकार हो गया,
आज के अख़बार में फिर बलात्कार हो गया ।-
समंदर की लहरों में तूफान लिख दूंगा,
इस्तकबाल में नीला आसमान लिख दूंगा,
बल्लेबाजी हो या गेंदबाजी
तिरंगे के सजदे में परिणाम लिख दूंगा,
और बात जब मेरी काबिलियत की आएगी,
तो हर तरफ हिंदुस्तान लिख दूंगा.....-
मेरे सवालों का जवाब उसके पास है,
जुबां ख़ामोश है, लफ्ज़ उसके पास है,
तन्हा मन है, वजह उसके पास है
बीमार दिल है, मरहम उसके पास है,
यूं तो सब कुछ पता है,
फिर भी लापता हूँ, पता उसके पास है....-
कमज़ोर रिश्तों पर काम कर रहा हूँ,
कुछ रिश्तों को नीलाम कर रहा हूँ...
जो वक्त पर साथ ना आए,
समय पर काम न आए,
उस वाक्या को खुलेआम कर रहा हूँ...
वो जो सामने सच का आईना बताते है,
और पीठ पीछे खंजर दिखाते है,
उन जख्मों को सरेआम कर रहा हूँ...
ज़रूरत पड़ने पर पीछे हट जाते,
अजनबी की तरह मुंह मोड़ जाते,
उस वक्तव्य को आखिरी प्रणाम कर रहा हूँ...
कमज़ोर रिश्तों पर काम कर रहा हूँ,
कुछ रिश्तों को नीलाम कर रहा हूँ...-