Vinod   (VINOD KUMAR)
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Joined 19 June 2019


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Joined 19 June 2019
31 AUG AT 10:41

दिल की कश्ती है,
नाव की सैर है,
समंदर सा इश्क़ है,
लहरों सा बैर है,
तू कोई अपना है,
या कोई गैर है,
इबादत में बस
इतनी कमी है,
तू मेरे बगैर है,
मैं तेरे बगैर हूँ...

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27 JUN AT 21:28

मैं रथ पे सवार हूँ, आठवाँ अवतार हूँ,
मैं ही ब्रह्मांड, मैं ही संसार हूँ,
मैं ही गम, मैं ही त्यौहार हूँ,
मैं भक्ति की धारा, मैं मोक्ष का द्वार हूँ,
मैं ही शक्ति, मैं ही जीवन का उद्धार हूँ,
मैं रथ पे सवार हूँ, आठवाँ अवतार हूँ.....

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3 JUN AT 23:44

मैं जमीं को बुलाऊँगा, आसमान आएगा,
मेरी मेहनत के पास चलकर ख़ुद मुकाम आएगा,
मेरी कामयाबी इतना शोर मचाएगी,
इतिहास के पन्नों पर हर बार मेरा परिणाम आएगा...

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30 MAY AT 21:42

अब उससे बात नहीं होती,
रोज मुलाकात नही होती,
दर्द बहुत हैं जज्बातों में,
अगर वो होती तो,
जिंदगी अज्ञात नही होती,...

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11 MAY AT 11:59

न वो कभी बोल पाई,
न मैं कभी बोल पाया,
रिश्ता समझा न सका,
न मैं समझ पाया...
सब अच्छा चल रहा था,
पर वक़्त का दौर ऐसा आया,
ग़ुरूर ए इश्क़ फिर
किसी को रास न आया,
लफ़्ज़ों का परिणाम,
दोनों के विरोध में आया,
वो मुझे न मिल पायी,
मैं उसे ना मिल पाया...

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15 MAR AT 22:08

अचानक उठा तो देखा,
कमरे में माँ नही है,
आंगन देखा,किचन देखा,
मेरे जीने की वजह नही है...

उदासी चारों तरफ है,
हँसने की वजह नही है....

वो माँ की मधुर आवाज,
फिजाओं में एहसास नही है....

आँसू भी नही आ रहे,
उसे मेरी चौखट का पता नही है...

भयावह मंज़र दिख रहा है,
अस्पताल का पता नही है...

अचानक उठा तो देखा,
कमरे में माँ नही है,
मेरे जीने की वजह नही है...

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4 MAR AT 20:36

वो हवाओं से लड़कर
बड़े-बड़े पहाड़ों को हराता है,
लहरों को थाम कर,
मंज़िल को करीब ले आता है,
मैदान पर डटे रहकर,
140 करोड़ लोगो के दिलों मे बस जाता है,
तब जाकर कोई कोहली, विराट कहलाता है....

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15 AUG 2024 AT 20:22

सो गए जुगनू और अंधकार हो गया,
आज के अख़बार में फिर बलात्कार हो गया,

तो कल का है ये वृत्तांत,
जो आज का मुख्य समाचार हो गया,

राह चल रही अपनी आरजू लिए,
एक स्त्री पर फिर प्रहार हो गया,

भरे बाजार में अत्याचार हो गया,
ये पूरा समाज गुनेहगार हो गया,

उसके ख्वाबों का संहार हो गया,
एक स्त्री का देह व्यापार हो गया,

वो दरिंदा इंसान के रूप में गद्दार हो गया,
कोई बाप आज फिर शर्मशार हो गया,

उसकी चीख का नाम गुहार हो गया,
जैसे कोई टूटा हुआ सितार हो गया,

सो गए जुगनू और अंधकार हो गया,
आज के अख़बार में फिर बलात्कार हो गया ।

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28 JUN 2024 AT 8:39

समंदर की लहरों में तूफान लिख दूंगा,
इस्तकबाल में नीला आसमान लिख दूंगा,
बल्लेबाजी हो या गेंदबाजी
तिरंगे के सजदे में परिणाम लिख दूंगा,
और बात जब मेरी काबिलियत की आएगी,
तो हर तरफ हिंदुस्तान लिख दूंगा.....

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9 JUN 2024 AT 13:34

जो सभी अवस्थाओं में समान्य है,
वही संपूर्ण इंसान है....

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