Vinit   (Raj)
385 Followers 0 Following

read more
Joined 27 July 2019


read more
Joined 27 July 2019
30 DEC 2022 AT 14:43

जाकर दूर अपनों से रह नहीं सकता,
परेशानी ये है की उनसे ये कह नहीं सकता ।
ज़िम्मेदारियों का बोझ है कंधों पर,
साथ जज़्बातों के भी बह नहीं सकता ।
माना आँसुओं से ख़्वाब धूधले हो रहे हैं,
पर किसने कहा ये साथ गह नहीं सकता ।
ख़ुद को जीने के लिए स्वयं को मारना पड़ता है,
उनकी उम्मीदों के साथ मैं ढह नहीं सकता ।
आदत है अंधेरों की जी लूँगा काली इन रातों को,
चौंधिया रही हैं आँखें उजाले सह नहीं सकता ।।

-


30 DEC 2022 AT 14:35

माना कोयले की खान में हैं तो कालिख लगेगी,
पर एक दिन क़िस्मत अपनी हीरे सी चमकेगी ।
हाथों की लकीरों को बदला भी जा सकता है,
देखना मेरी मेहनत कामयाबी की इबारत लिखेगी ।
भले ही कानों में आज सब उगलीं डाले बैठे हैं,
पर एक दिन मेरी परिश्रम जमाने भर को दिखेगी ।
वादा वीरान इन आँखों और खामोश इन होंठों पर ,
बारात मुस्कुराहटों की एक शाम यक़ीनन सजेगी ।
कब तक सोयेगा नसीब बदनसीबी की छाँव में,
ख़ुशियों के शजर तले एक दिन नींद ए खुलेगी ।
इतनी आसानी से उम्मीदें हार जाएँ इससे तो रहे हम,
आख़िरी साँस ही सही पर उम्मीदों की लौ जलेगी ।
मुर्दों के हिस्से में कहां संघर्ष संघर्ष साँसों का सच है,
टूटती साँसों के बीच भी हक़ की अलख जगेगी ।

-


27 NOV 2022 AT 13:40

सूरज सिर्फ बदनाम है क़त्ल तो चॉंद करते हैं,
दीवाने हैं हम जो ग़लत सही फ़रियाद करते हैं |
तुम्हें शायद खबर नहीं इसीलिए बता दे रहा हूँ,
इमारत की हिफ़ाज़त हमेशा बुनियाद करते हैं |
क़दर नहीं करते जिन नज़दीकीयों की अब हम,
सच है उन्हीं रिस्तो को तन्हाईयों में याद करते हैं |
बिखरे पुराने जज़्बातों की तुरपायी ज़रूरी होती है,
रिस्ते टूटने से वही बच जाते हैं जो संवाद करते हैं |
अनुशासन बहुत लाज़िमी है कामयाबी के लिए,
डोर से पंतगों को नहीं हम कभी आबाद करते हैं |

-


11 JUN 2022 AT 13:36

जिन्दगी कभी मुक्तशर नहीं होती,
दर्द की बादशाहत उम्रभर नहीं होती |

सोचना ही है गर कुछ अच्छा सोचो,
नफरत,मोहब्बत की डगर नहीं होती |

नफरत घृणा क्रोध से उपजेगा दर्द,
और इससे खुशी तनिकभर नहीं होती |

एक बात बताऊँ सुनो जरा ग़ौर से,
पीडा़ मुस्कुराहट की दर नहीं होती |

नमी कमजोर कर देती है बुनियाद को,
घर के ऑंगन में कहीं नहर नहीं होती |

-


1 JUN 2022 AT 17:20

अपनी गलतियों का दोष लोग,
अकसर देते हैं उनको जो बेजान होते हैं ।
सुनते है छुप छुप कर बातें,
और कहते है की दीवारों के भी कान होते हैं।।

-


8 MAR 2022 AT 11:24

सभ्यता का युग तब आएगा
जब औरत की मर्ज़ी के बिना 
कोई औरत को हाथ नहीं लगाएगा. 
Happy international women's day

-


1 JAN 2022 AT 16:10

उम्र की डोर से फिर
एक मोती झड़ रहा है....
तारीख़ों के सीने से
दिसम्बर, फिर उतर रहा है..
कुछ चेहरे घटे,चंद यादें जुड़ी..
गए वक़्त में....
उम्र का पंछी नित दूर,
और दूर निकल रहा है..
गुनगुनी धूप और ठिठुरी रातें,
जाड़ों की...
गुज़रे लम्हों पर झीना-झीना
सा इक पर्दा गिरा रही है..
ज़ायका लिया नहीं,
और फिसल गई ज़िन्दगी...
वक़्त है कि सब कुछ समेटे
बादल बन उड़ रहा है..
फिर एक दिसम्बर,
गुज़र रहा है..
बूढ़ा दिसम्बर जवां जनवरी के
कदमों मे बिछ रहा है
लो इक्कीसवीं सदी को
बाईसवॉं साल लग रहा है....

-


12 MAY 2021 AT 15:30

गर साथ दे सारा इंडिया
तो फिर से मुस्कराएगा हमारा इंडिया

-


5 MAY 2021 AT 18:53

आज सब ऑक्सीजन को तरसते हैं

सड़क विस्तार के लिए
सारे पेड़ों के कटने के बाद
बस बचे हैं एक नीम और बरगद
जो अस्सी साल के साथ में
शोकाकुल हैं पहली बार
नीम बोला..
परसों जब हरसिंगार कटा था
तो बहुत रोया बेचारा
सारे पक्षियों ने भी शोर मचाया
गिरगिट ने रंग बदले
गिलहरयां फुदकी
मगर कुल्हाड़ी नहीं पसीजी
और फिर वो मेरे से दो पौधे छोड़कर
जब शीशम कटा ना
तो लगा कि मैं भी रो दूँगा
चिड़िया के घौसलो से अंडे गिर गए
गिलहरियों को तो मैंने जगह दे दी
मगर तोते के बच्चे कोटर से गिरते ही मर गए.........

-


2 MAY 2021 AT 14:16

मैं धीरे-धीरे सीख रहा हूँ कि !

मुझे हर उस बात पर प्रतिक्रिया
नहीं देनी चाहिए जो मुझे चिंतित करती है।

मैं धीरे-धीरे सीख रहा हूँ कि...
जिन्होंने मुझे पीड़ा दी है मैं भी
उन्हें पीड़ा नहीं पहुँचाऊँ।
ये कृत्य निरर्थक है।

मैं धीरे-धीरे सीख रहा हूँ कि............

-


Fetching Vinit Quotes