टूटी छत
ना भीगती वो किताबें अगर
मकान के ऊपर छत होती ।
ना फैलती स्याही किताबों की अगर
टूटी न मकान की छत होती ।
ना ढलता हौसला उस बच्चे का अगर
बरसात में न भीगी किताबें होती ।
वो भी देता जवाब हर प्रश्न का अगर
किताबों की पंक्तियां पूरी होती ।
ना होती वो मासूम निगाहें मायूस अगर
मकान के ऊपर छत होती ।-
mast pahadi😎
Devbhumi uttrakhand 🌄🌲🌿♥️
जाने ओढ़ कर ये चेहरा किसका
चल रही हूं मैं
जो रहता है सबके दिलों में छुपकर
वो फरेब हूं मैं
जाने ये कैसा भ्रम है ये जिसे अपना
कह रही हूं मैं
दूर कहीं जो दिखती है पानी की बूंद जैसी
मानो वही रेत हूं मैं-
कर सकूं मैं बखान अपने प्यार का
वो शब्द कहां से लाऊं मैं
जो गीत तुम्हें पसंद है
वही गीत हर पल गुनगुनाऊं मैं
ख्वाबों में भी तुम्हें देखना चाहे
इन आंखों को कैसे समझाऊं मैं
तुम हो हर सुबह में मेरी
हर शाम में तुम्हें साथ पाऊं मैं
जो देख लो एक बार तुम मुझे
तो उम्र भर के लिए तुम्हारी आंखों में बस जाऊं मैं-
तुम्हें पाकर मैंने जाना है कि
अब और कुछ भी पाना शेष नहीं
तुम चांद हो मेरी तन्हा रातों का
अब कोई पूर्णिमा शेष नहीं
तुम्हें पाकर मैं अब पूर्ण हुई
अब खोज स्वयं की शेष नहीं
तुम श्रृंगार हो मेरे जीवन का
अब सजना सवरना कुछ शेष नहीं...
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ठंडी हवा और ऊंचे पहाड,
मीठी बोली और रंगों भरे त्योहार
सीधे साधे लोग यहां पर बातें उनकी मजेदार
राहगीर भी यहां निकले दूर का रिश्तेदार
चाय मानो हो जैसे सबका पहला प्यार
ठहरा और बल है हमारे तकिया कलाम
खूबसूरती बिखेरते हैं बर्फ से ढके पहाड
झीलों की नगरी है यहां जिसे कहते है नैनीताल
और देवभूमि है हमारे उत्तराखण्ड का दूसरा नाम !!!-
है जीवन बहुत ही छोटा और हम
अनेक ख्वाहिशें लिए चल रहे हैं!
हथेली से रेत की तरह फिसल रहा है समय
हम कलाई पर समय को बांधकर
जाने किस भ्रम में चल रहे हैं!
हैं अंतर्मन में उलझने कई और हम
तन की सजावट लिए चल रहे हैं!
मृत्यु है जीवन का सबसे बड़ा सच!
और हम दुनिया भर का मोह लिए
इस सच से होकर बेखबर चल रहे हैं ...!-
सोचो अगर यू ना हुआ होता
लाज का दामन पकड़ी मां ने
अपने नवजात को ना बहाया होता
अर्जुन से भी श्रेष्ठ गुरु द्रोण ने उसे ठहराया होता
अगर जमाने ने उसे अपनाया होता तो शायद,
दुर्योधन की मित्रता का भार
उसके सर पर ना आया होता
फिर रण में अर्जुन ने
अपने बड़े भाई का रक्त ना बहाया होता
परिणाम तो शायद एकसमान ही रहता युद्ध का
किन्तु सूत पुत्र नहीं सूर्यपुत्र ही वो कहलाया होता...
- विनीता पांडेय-
तुम जब भी मुझे याद आओगे!
कभी बन कर हसीं मेरे होंठो पर छाओगे
तो कभी आंसू बन कर मेरी आंखों को भिगाओगे
मेरे अकेलेपन में तुम हमेशा मेरे साथ मुस्कुराओगे
तुम जब भी मुझे याद आओगे!
एक अनसुना सा किस्सा फिर मुझे सुनाओगे
शीत की ठंडी हवाओं और वसंत के फूलों की तरह
तुम हर दिन हर ऋतु मेरा साथ निभाओगे
पर तुम्हारी स्मृतियों के आने का
सबसे खूबसूरत पल वह होगा,
जब तुम मेरी कविताओं का श्रृंगार बन कर आओगे!-
रवैया सख्ती का अपनाकर
आपने भरपूर प्यार जताया है!
अपनी जरूरतों को करके नजरअंदाज
हमारी ख्वाहिशों को पूरा किया है!
असफलताओं से न हारकर ,
आगे बढ़ते रहना आपने सिखाया है!
मां के आंचल ने दी है छांव अगर तो
पिता ने बन कर अंगार जीवन को रौशन बनाया है!!!-
रह तो लेते हैं तेरे बिना भी हम,
पर तेरे साथ रहने की बात ही कुछ और है!
कट तो जाती हैं रातें तन्हा चांद को तकते हुए,
पर तेरे साथ बैठकर तारों को गिनने की बात ही कुछ और है!
तेरे बिना भी चलते रहेंगे इस सफर में हम,
पर तेरे साथ चलने की बात ही कुछ और है...!!!-