न मैं ब्रह्ममण, न मैं क्षत्रिय न मेरा कोइ वर्ण | न मैं देव, न मैं दानव न मेरी कोइ पह्चान | न मैं मुर्ख ,न मैं विद्वान इससे परिचित है संसार | न मैं आस्तिक , न मैं नास्तिक न किसी से मेरा आस | न मैं सन्यासी, न मैं गृहस्थी, यह मेरा परिचय न है| मैरा परिचय जाने संसार, मेरा हर एक अंश मुल तत्व है |
मैं नहीं डरता इस समाज से जो मेरे बारे में क्या सोचता है| समाज की सच्चाइ है सुनी सुनाइ बात से किसी की वास्तविक्ता से जोड़ना |समय मेरी परिक्षा ले रहा है और मुझे स्वीकार है |
दुख, अपमान व पराजय भय से व्याप्त व्यक्ति जीवन दरिद्र्ता से जीता है व ताम्सिक प्रवृत्ति अपनाता है लेकिन चिंता रहित विजय एवं पराजय दोनो में स्थिर रहकर इश्वर भक्त सबसे सुखी रह्ता है |
समाज क्या सोचती है इसका मुझे चिन्ता नहीं, मान -अपमान का मेरे लिये कोइ अर्थ नहीं | विचार शुद्ध हो तो कलंक भी मिट जाता है, पर्मात्मा के शरण में आए धर्मात्मा कहलाता है |