नया अध्याय नयी उमंग
चलो कुछ नया करे मिलकर संग
कोई कह रहा शुरू कोई कह रहा अंत
मार्च के जानें का ग़म या बोलें अप्रैल का जन्म
आओ मिलकर करे देश में भरें अच्छी ऊर्ज़ा की तरंग-
Writing ✍is my hobby😇.
I love😘 to write poetr... read more
बरसते सब ने देखा समंदर,
टूटते देखा एक तारा।
ना देखा तो बस ये
किस की आँख से आँसू टपका,
किस का टूट गया सहारा ।
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आज फिर से आयी है वो रात
जो लाई थी अपने साथ दुख की बात
बैठी रही सिराने वो बाबाजी के सारी रात
फिर सुबह सुबह ले गई वो उन्हें अपने साथ
आज फिर से आयी है वो रात
कैसी रुत है ,ऐसी रुत में
आँखें क्यों भर आती हैं
क्यों तन-मन से हूक उठ जाती है
क्यों जीवन बे-मा'नी सा लगने लगता है
घर सूना वीरान ये आँगन
और कमरा वो बिना आप खाली सा लगता है
रात को सूखे पत्ते सहन में गिरते हैं
जो गुज़र गए वो दिन कब वापस फिरते हैं
कहते हैं सब मिट्टी से बनते है मिट्टी में ही मिल जाते है
मिट्टी की तह में भी जा कर रिश्ते कब मिट पाते हैं
हो चाहे किसी भी जहां में याद तो बहुत आते है ।
बाबा जी की प्रथम पुण्यतिथि पर उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि-
( part 2)
इस दुनियां में मन मे मेरे
बस फिर शिव संभू की नगरी थी।
तुझमें खोकर, बस मन की मेरे
वो ही एक सामग्री थी ।
बस शिव संभू का नाम जापा
बस उनके ही नाम हुए ।
तुमको खोकर संभले हैं ऐसे
तन मन तब शांत हुए ।।
किसी से मिलना मिलकर बिछड़ना
ये तो जीवन का हिस्सा है।
मिले थे उनसे एक झरने पर
इतना सा उनका-मेरा किस्सा है ।
किस्सा ये कहानी हो जाए बस इतना
भोले बाबा तुम्हारा अहसान हो जाए ।
तुमको खोकर संभले हैं ऐसे
तन मन तब शांत हो पाए ।।-
हर उम्र की है एक नई मुसीबत
हर मुसीबत को हमने रोंध दिया
थक गया है हर सितमगर यहां
जब हमने ठाना अब बहुत हुआ
कभी इश्क़ तो कभी लंकाभेदी
हर किसी का हमने तोड़ किया
नफ़रत हुई कभी जो बेमतलब की
गला तब ही हमने उसका घोट दिया
जिन शिकायतों ने दिल चिरा था
उनकी मौत का जब ही फ़रमान किया
यारी कह दू या भाईचारा है अपना
हर टूटता रिश्ता हमने जोड़ लिया
रहे हमेशा आकाश में रजत सा प्रतापी सितारा
विनीत भाव से भोलेनाथ को अर्चित(प्रार्थना) किया
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मुझे परवाह तो आज भी है तेरी,
बस हक खो बैठे हम अब हाल पूछने का-
रिश्तों की भीड़ थी , भीड़ में था वो ख़ामोश
सबने ले रखे थे सवाल , पर वो खड़ा रहा खामोश
सभी थे प्यासे पर नदी थी सूखी अभी
सबने कोसा नदी को पर को खड़ा रहा खामोश
छोड़ छोड़ चल दी फिर भीड़ अपने सवालों को लेकर
वो खड़ा रहा अकेला साथ आइने की तरह खामोश
जब जब देखा उसने पीछे खड़े है खंजर लिए अपने
वो पीट सटा खड़ा हो ही गया बिल्कुल ख़ामोश
जब हुई बरसात मेरे सपनों पर अनचाही कहानियों की
वो छत बना भीगा खड़ा ही रहा खामोश
हम थे तीन उस घर में तो , फैसले रहे फासलों से गर
वो पेड़ था सो शाखो कों जोड़े खड़ा रहा खामोश
हर किसी को गुमान कि मंज़िल के हूं आस पास
' पिताजी' देते रहे रोशनी आग में जलते रहे खामोश
- विनीत
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मैं जानता हूं कि कुछ न बदलेगा
न आएँगे हक में फैसले हमारे कभी
जब भी होगा इरादा सरकारें जाएगी अदल बदल
ख़यालों के समुंदर में न कुछ तब्दीली आएगी
न बदलेगा तेरा किरदार , न मेरा व्यवहार बदलेगा
मगर इन नज़्मों ग़ज़लों की कहानी और गीतों की
आती जाती लहरों से , रोज़ बदलते इन शहरों से
तेरे जिक्र-ए- बहार से , कुछ रोज़गार तो होता रहे
ख़ामोशी के बीच राह में इंतज़ार तो होता रहे
मुझ को तेरे होने का एहसास तो होता रहे
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शामिल हो तुम मेरी हर कहानी में ,
कभी मेरे होंठों की हंसी मे, तो कभी आंखों के पानी में !-
फिर से बदला है शायद वक्त किसी का,
चलते सफ़र में , हमसफ़र किसी का
जिस धूप मे जलता था वो,
आज दोस्त बना हैं फिर से उसी का
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