Vineet Sharma   (विनीत "प्रेमासक्त")
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Joined 17 May 2017


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23 HOURS AGO

फिर भी मगर कुछ यहाँ बेवज़ह नहीं होता
ये जो रंग बदलते चेहरे दीखते हैं मौसम-बेमौसम
इंसान की फ़ितरत का कुछ पता नहीं होता|

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30 APR AT 9:36

ख़्वाब अब कोई बचा ही नहीं
जो था मेरा वो रहा ही नहीं
जाऊँ किस डगर पता ही नहीं
मंज़िल से मेरा राब्ता ही नहीं
छोड़ो इन बातों में कुछ रखा ही नहीं
मुझे रही मेरी परवाह ही नहीं|

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29 APR AT 21:18

It’s been days since we last hung out,
I’m waiting for a night out,
No, I don't want to go to a pub,
Neither, I’m asking for a club,
I just want to hold your hands & walk along,
While walking we will discuss what went wrong,
Will sit somewhere and eat pizza along,
Ice cream we will lick next and sing our song,
Together we will enjoy that night out,
It’s been days since we last hung out.

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28 APR AT 19:11

..........

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26 APR AT 18:25

तेरे जाने का ग़म है मुझे
टूट चूका हूँ ज़र्रा-ज़र्रा मैं

मगर तू आए ये नहीं चाहता मैं|

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25 APR AT 22:08

धड़कन नाम लेती है तुम्हारा
याद करती है पल संग था जो गुजारा
कहती है क्यों धड़कती हूँ मैं अब
तेरा हाथ छूट गया ही है जब
साँसों का है जो ये आना-जाना
गैरजरुरी लगता है बुनना ये ताना-बाना
धड़कन नाम लेती है तुम्हारा
नैनों से बहती है अश्रुओं की धारा |

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24 APR AT 21:00

पहलगाम

ह्रदय विर्दीण है
घाव गहरा है
धर्म पूछकर मारा है
चाहते वो बँटवारा है
भारत राष्ट्र मगर एक है
इरादा हमारा नेक है
औक़ात तुमको तुम्हारी दिखाएंगे
पीढ़ियाँ काँपेगी ऐसा दर्द पहुंचाएंगे|

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23 APR AT 20:42

हाँ सफ़र तुम्हारा है
मंज़िल तुम्हारी है
रास्ता तुम्हे ही पूरा करना होगा
परेशान होकर करना है
दुखी होकर करना है
या मुस्कुराते हुए हर परिस्तिथि को
गले लगाते हुए करना है
ये मर्ज़ी तुम्हारी है ...

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22 APR AT 14:36

I envision

I envision encountering
the version of you from the past
who once held affection for me.
I will share my grievances with her
about the way you treated me.

With tears in her eyes,
she will express her anger towards you
for the pain you caused to her love.

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21 APR AT 21:10

सोचना भी इक अजीब प्रक्रिया है
कभी बहुत ज्यादा हो जाता है
कभी बहुत कम,
कभी सोचते-सोचते दिमाग थक जाता है
कभी सोच ही नहीं पाता है,
कभी मानसिक अवसाद का रूप ले लेता है
कभी मानसिकता को नया आयाम देता है,
कई बार सोचते-सोचते सोचने लगते हैं
सोच क्या रहे थे और सोचना क्या है!
सोचना भी शायद सीखना होता है
कितना, कब और क्या!
मगर सिखाए कौन?
अब ये सोच रहा हूँ!!

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