Vineet Sharma   (विनीत "प्रेमासक्त")
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Joined 17 May 2017


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14 SEP AT 11:36

मैं हिन्दी, भाषाओं की रानी हूँ,
हर जुबाँ पे चढ़ती कहानी हूँ।
लफ़्ज़ों के गहने पहनकर इतराती हूँ,
हर चेहरे पर मुस्कान लाती हूँ।

मेरी बोली में माँ की लोरी है,
पिता का प्यार, दादी की कहानी है।
मंदिर में बजती घंटी की तरह,
हर दिल में उतर जाती हूँ।

संस्कृत की बेटी, मैं हूँ प्यारी,
हर रंग में सजती, मैं हूँ न्यारी।
उर्दू की ग़ज़लों में भी मैं दिखती,
मेरी मिठास सब भाषाओं में घुलती।

मैं रामायण की चौपाई हूँ,
कबीर की दोहे में समाई हूँ।
तुलसी की भक्ति, मीरा का गान,
कविताओं में हैं मेरे प्राण।

जब मैं बोलती, तब फूल खिलते हैं,
दिल से दिल के रिश्ते मिलते हैं।
हिन्दी दिवस पर यह मेरा मान,
दुनिया की हर भाषा का करती सम्मान।

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1 SEP AT 21:19

जज़्बातों के समूह ने
लफ़्ज़ों को थाम लिया
हर बात सुनहरी तेरी याद आई
जब मुझ पर तूने इलज़ाम दिया
लब कह न पाए कुछ भी
बस तेरा नाम लिया
आँसू बोल पड़े मेरे वो सब
जो भी था दिल में उफान लिया|

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30 AUG AT 21:16

तुम से जब तक नहीं मिले थे
अकेले थे मगर इतने भी नहीं थे
अँधेरा इक अजीब घर कर गया है
उजालों से लगने डर लग गया है
तुम्हारे होने से न होने का सफ़र ये
मुझको मुझसे ही जुदा कर गया है|

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29 AUG AT 21:25

ये कैसा रास्ता है
जो कहीं जाता ही नहीं है
जाने कब से चले जा रहे हैं
कोई अंत नज़र आता ही नहीं है
जब मृत्यु ही बस मंज़िल है
तब रास्ते का लुत्फ़ क्यों उठाता नहीं है!

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31 JUL AT 19:10

कुछ कहने की ज़रूरत नहीं
कुछ सुनने की मुझमें हिम्मत नहीं
नहीं, मुझे तुझसे कोई शिक़ायत नहीं
बस, बीच हमारे पहले जैसी मोहब्बत नहीं|

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30 JUL AT 22:35

लोगों की रही उसे आदत नहीं है|

गए हैं उसे छोड़ कर अकेले तनहा जो
उनसे भी उसे कोई शिक़ायत नहीं है|

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24 JUL AT 21:59

निष्काम भाव से कर्म करो
कर्म करो और आगे बढ़ो
सोच-विचार में मत पड़ो
फल-वल की चिंता न करो
मन को खुद के काबू करो
कान्हा के चरणों में शीश धरो|

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16 JUL AT 18:44

मुझको मुझसे मिलाया है उसने|

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14 JUL AT 21:49

नहीं आया हमको रोक पाना तुमको
न ही आया हमको समझाना तुमको
लगेगा अरसा तुमको लगेगा ज़माना हमको
न भूलेंगे हम तुमको न भूल पाओगे तुम हमको|

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13 JUL AT 19:58

मेरी हर ख़ूबसूरत याद का हिस्सा हो तुम
सच हुए मेरे कितने ख़्वाब की वज़ह हो तुम
कहे-अनकहे मेरे हर जज़्बात का हिस्सा हो तुम
अब भुलाना कठिन है तुम्हे, मेरे जीने की वज़ह हो तुम|

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