चलो कुछ दिन रुक ही जाते हैं.....
रुकते हैं उस आंगन में जहां
खाते थे,गाते थे और थककर फिर से जाते थे।
चलो रुक ही जाते हैं....
रुकते हैं उस आंचल में जहां
सोते थे, रोते थे और छुपकर फिर खो जाते थे।
चलो रुक ही जाते हैं.....
रुकते हैं उस उपवन में
जहां हंसते थे,मचते थे और धुमक चौकड़ी करते थे।
चलो कॉरॉना कुछ तो लाया,
लौट अपनी मिट्टी को लाया,
आओ देश को जिताते हैं
कुछ दिन रुक ही जाते हैं।।
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