Vinayak Das   (राही औरंगाबादी)
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Joined 26 February 2018


Joined 26 February 2018
12 MAY AT 13:14

सय्याह के खून से छिड़ी जंग,
सिपाही के लहू से थमी हैं।
ख़बरवालों की आँखों में,
टीआरपी की नमी हैं।

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30 APR AT 18:32

मेरी तन्हाई को रुस्वा कर दिया।
तुने आ के मुझे तन्हा कर दिया।

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19 MAR AT 20:43

सब के अपने सच होते हैं।
सब अपनी जगह सही होते हैं।
बस जगह ही सही हैं,
उस जगह से...

बाकी सब झूठ हैं......

तुम किस सच की बात कर रहे हो?

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13 MAR AT 21:14

इक रोज़ तो सब ठीक होगा, की उम्मीद में।
हमने गवाँ दी जिंदगी बस सराब की दीद में।

सराब - मृगजळ, मृगतृष्णा

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8 MAR AT 20:23

तुझ्याविना मी आयुष्याचा विचार करतो आहे।
तुझ्याविना तर आयुष्याचा विचार जमणे नाही।

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28 FEB AT 2:26

टाळतो मी काढणे फोटो स्वतःचा,
की खिळ्यावर भार होतो तसबिरीचा।

मुखवटे माझेच मी बघतोय हल्ली,
दोष का कोणास द्यावा मी फुकाचा।

तू खरा आहेस तर निःशंक हो तू,
का विशद करतोस दावा सत्यतेचा।

दावितो उजव्यास डावा नेहमी जो,
भरवसा ही का करावा आइन्याचा?

प्रेम करणे एवढा अधिकार अपुला,
प्रेम नाही विषय 'राही' लादण्याचा!

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26 FEB AT 10:20


शिवा तुझ्या शिवाय ना उपाय अन्य राहतो,
इथे चराचरामध्ये नमः शिवाय जागतो....

हरा तुझी वसुंधरा, तुझ्याच मेघ शृंखला।
वाहतो जटामधून, पापनाशिनी झरा।
तुझ्या गळ्यात भैरवा, भुजंग हार शोभतो।
शुभंकरा श्री शंकरा, त्रैलोकी नाद गाजतो।

तुझा कृपा कटाक्ष जो भगिरथास तारतो,
विशाळ भाल पट्टीकेत शशांक शांत शोभतो।
अनाहता मधून नाद ओम ओम गाजतो,
तारण्या जगास तूच हलाहलास प्राशतो।

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18 FEB AT 16:35

काय होते, काय ते सांगून गेले।
ज्यास जैसे वाटले, बोलून गेले।

वाटते आयुष्य सुद्धा हे नकोसे,
कोण माझ्या एवढ्या आतून गेले।

खूप काही बोललो आपण परंतू,
बोलणे पण नेमके राहून गेले।

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24 JAN AT 2:23

समझने की कूवत जरा पास होती,
तो ये जिंदगी एक सौगात होती।

बहुत खूबसूरत हैं आँखे तुम्हारी,
नज़रिया भी होता, तो क्या बात होती।

जिसे दिल ने चाहा, उसे दिल में पाया...
न मिलकर भी उनसे मुलाकात होती।

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13 NOV 2024 AT 15:13

जिंदगी यूँही बिता दोगे क्या तकरार में।
जियोगे कब तलक किसी इंतिशार में।

कितना कुछ छोड़ा हैं वक़्त के भरोसे।
कहीं हम ही न गुज़र जाए इंतज़ार में।

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