Vinayak Das   (राही औरंगाबादी)
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Joined 26 February 2018


Joined 26 February 2018
5 JUL AT 17:52

मैं उदासी के पर नोचता रहता हूँ।
न जाने मैं क्या सोचता रहता हूँ।

तू भी अनसुना कर मुझे या रब,
मैं तो कुछ भी बोलता रहता हूँ।

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2 JUN AT 13:18

खुदा को मानने वालों,जरा समझो कभी यूँ भी।
खुदा गर सब बनाता हैं, बनाया उसने हमको भी।
यहाँ जब उसकी मर्जी से हिले न एक जर्रा भी।
तुमहि कहदो फिर कैसे ही जुबाने हैं जुदा अपनी?
खुदा न खुद से बोलेगा, हकीकत जानलो तुमभी,
ज़बान-ए-पीर'फ़कीरो में, करेगा शायरी वो ही।
तमन्ना हैं जो जन्नत की, कजा के दाम मिलती हैं।
गवारा मौत पर किसको, तुम्हे भी जान हैं प्यारी।
जहन्नुम जिंदगी कर दे, खयाली बात जन्नत की,
मुसाफिर एक कश्ती के, यहीं हमभी यहीं तुमभी।

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12 MAY AT 13:14

सय्याह के खून से छिड़ी जंग,
सिपाही के लहू से थमी हैं।
ख़बरवालों की आँखों में,
टीआरपी की नमी हैं।

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30 APR AT 18:32

मेरी तन्हाई को रुस्वा कर दिया।
तुने आ के मुझे तन्हा कर दिया।

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19 MAR AT 20:43

सब के अपने सच होते हैं।
सब अपनी जगह सही होते हैं।
बस जगह ही सही हैं,
उस जगह से...

बाकी सब झूठ हैं......

तुम किस सच की बात कर रहे हो?

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13 MAR AT 21:14

इक रोज़ तो सब ठीक होगा, की उम्मीद में।
हमने गवाँ दी जिंदगी बस सराब की दीद में।

सराब - मृगजळ, मृगतृष्णा

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8 MAR AT 20:23

तुझ्याविना मी आयुष्याचा विचार करतो आहे।
तुझ्याविना तर आयुष्याचा विचार जमणे नाही।

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28 FEB AT 2:26

टाळतो मी काढणे फोटो स्वतःचा,
की खिळ्यावर भार होतो तसबिरीचा।

मुखवटे माझेच मी बघतोय हल्ली,
दोष का कोणास द्यावा मी फुकाचा।

तू खरा आहेस तर निःशंक हो तू,
का विशद करतोस दावा सत्यतेचा।

दावितो उजव्यास डावा नेहमी जो,
भरवसा ही का करावा आइन्याचा?

प्रेम करणे एवढा अधिकार अपुला,
प्रेम नाही विषय 'राही' लादण्याचा!

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26 FEB AT 10:20


शिवा तुझ्या शिवाय ना उपाय अन्य राहतो,
इथे चराचरामध्ये नमः शिवाय जागतो....

हरा तुझी वसुंधरा, तुझ्याच मेघ शृंखला।
वाहतो जटामधून, पापनाशिनी झरा।
तुझ्या गळ्यात भैरवा, भुजंग हार शोभतो।
शुभंकरा श्री शंकरा, त्रैलोकी नाद गाजतो।

तुझा कृपा कटाक्ष जो भगिरथास तारतो,
विशाळ भाल पट्टीकेत शशांक शांत शोभतो।
अनाहता मधून नाद ओम ओम गाजतो,
तारण्या जगास तूच हलाहलास प्राशतो।

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18 FEB AT 16:35

काय होते, काय ते सांगून गेले।
ज्यास जैसे वाटले, बोलून गेले।

वाटते आयुष्य सुद्धा हे नकोसे,
कोण माझ्या एवढ्या आतून गेले।

खूप काही बोललो आपण परंतू,
बोलणे पण नेमके राहून गेले।

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