“ तिरा औ' मिरा इश्क़ मैं कामयाब देखूँ
तुम मिरे सपने देखो मैं तुम्हारे ख़्वाब देखूँ ”-
“ नया साल तुम्हारा ख़ुशगवार गुज़रे है
तेरे संग बिताये लम्हे यादगार गुज़रे है
जो मर्सिया पढ़ा था मायूस निग़ाहों ने
आज वही पल भी चमकदार गुज़रे है ”-
“ उफ़्फ़ साल-हा-साल गर्मी-ए-रफ़्तार
मैं तिरी जबीं से टपकता पसीना हूँ
यूँ हँस कर मुझ पर क़सीदा पढ़ने वालों
मैं ख़ाक-ए-सर्द दिसंबर का महीना हूँ ”-
फ़ज़ाओं में बिखरा धुंध गहरा है
जैसे शहर में बसा कोई सहरा है
चुभन आँखों में जलन सीने में है
जाने कैसा जख़्म मुझ में ठहरा है
नक़ाब लगाये फिरते हैं यहाँ सारे
दिल्ली तेरा अब ये कैसा चेहरा है-
नदी खारे समंदर के लिए जज़्बात से तर है
समंदर को पता है ये नदी का वो मुक़द्दर है
वफ़ा और बेवफ़ाई की मिसालें हैं यही दोनों
समंदर की कई नदियाँ, नदी का इक समंदर है-
ज़िन्दगी से बड़ी कोई पाठशाला, कोई कॉलेज, कोई यूनिवर्सिटी नहीं होती है. ज़िन्दगी हर पल हमें कुछ नया पढ़ाती और सिखाती है. ज़िन्दगी की इस राह में सबसे मिलते गए, सबसे कुछ न कुछ सीखते गए. सबका कुछ न कुछ उधार है, इसलिए सबका आभार है. #happyteachersday ❤️🙏
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“ हम बेशक़ इतराते हैं रोज़ कि मुल्क़ मेरा आज़ाद है ,
शहीदों ने लहू ऐसा निचोड़ा कि पूरा हिन्द आबाद है ”-
“ रस्म-ए-यारी नहीं होती यह बताई जाए
दोस्ती गर की जाए तो वह निभाई जाए ”-
“ यूँ देखिए तो आँधी में बस इक शजर गया
लेकिन न जाने कितने परिंदों का घर गया
जैसे ग़लत पते पे चला आए कोई शख़्स
सुख ऐसे मेरे दर पे रुका और गुज़र गया
मैं ही सबब था अबके भी अपनी शिकस्त का
इल्ज़ाम अबकी बार भी क़िस्मत के सर गया ”
- राजेश रेड्डी-
“ तुम से मिल कर भी मैं मिला नहीं
गर तुझे उन बातों का गिला नहीं
बयां कर दिया जो महसूस किया
दिल में मिरे अब कोई सिला नहीं ”-