जिसे पा नहीं सकते, उसे देख कर खुश होना भी इश्क़ हैं...
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मकान का मुझको क्या करना,
मकान तुमको ही मुबारक हो,
लेकिन ये घास की मख़मली जमीन मेरी है ।-
Death is not a greatest loss in life.
The greatest loss is what dies inside while still alive.-
The day you plan to give up. Remember the "why" for which you started.
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We are all dreaming of some magical rose garden over the horizon - instead of some roses that are blooming outside our Windows today.
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हम गोरेपन के इतने दीवाने क्यों है?
हालाँकि ये अंग्रेजों की फैलायी समस्या नहीं है,
उससे भी काफी पुरानी है।
जिनकी जड़े आलसी और निकम्मेपन से निकली होंगी। और यही निकम्मापन लोगो को धूप और श्रम से दूर रखा होगा। जिससे उनका रंग गोरा और चमड़ी साफ हुई होगी लेकिन इसके साथ डिप्रेशन भी हुआ होगा और इस डिप्रेशन की वजह से लोगो को कंट्रोल करने की भावना जगी होगी। और कंट्रोल करने के लिए श्रेष्ठ होने का प्रोपेगेंडा किया गया होगा।
और कंफ्यूज लोगो मे उनके जैसा होने का लालच हुआ होगा और पीढ़ी दर पीढ़ी ये काफी गहरी हुई होंगी।
गोरा होना सुंदर है, सम्माननीय है व श्रेष्ठ है।
अगर कंफ्यूजन दूर करना है तो धूप मे निकलो श्रम करो और जो रंग मिले वही तुम्हारा है, उसी में सेहत है और आनंद संभव है।
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जिंदगी में नशा बहुत जरूरी है।
नशा नहीं होने पर ‘लाइफ का परपज’ जैसे सवाल उठने लगते हैं, मोक्ष की कामना होने लगती है, महासमाधि या आत्महत्या की ओर कदम उठने लगते हैं।
लेकिन नशा सस्ता नहीं होना चाहिए, सस्ता नशा और भी ज्यादा खतरनाक होता है।-
हो सकता है कि आप इंटलैक्चुअली बहुत एक्सपर्ट हो गये होंगे लेकिन हमारा बॉयलॉजिकली जीवन संकुचित होता जा रहा है और पिछले दसकों में ये बहुत तीव्र परिवर्तन है।
पहले हमारे आस पास जैविकता हुआ करती थी, लेकिन अब कंक्रीट की दीवार है।
पहले लोग अपने पूरे शरीर मे रहा करते थे लेकिन अब ज़्यादातर दिमाग मे रहते है।
इसी तरह ज्यादातर लोगो का माइक्रोफ़्लोरा भी बहुत घट चुका है।
लाइफ तो डिजिटल हो ही रही है लेकिन बायलॉजी का अपना महत्व है, कोरोना में तो हम देख ही सकते है।
आपकी अपनी जिंदगी कैसी है?
आजकल आप बैलोजिकली ज्यादा अलाइव है या इंटेलेक्चुअली ?-
सत्य बोलों, मुक्ति है....2/2
परेशानियां तब तक, जब तक हम जिंदा है
और हम आज जिंदा है अपनी तमाम परेशानियों के साथ....
उनसे लड़ना है, जितना है,
फिर एक नए का सामना करना है।
और यही हमारा कर्म है।
किसी की खुद से लड़ाई है,
तो किसी की परिवार के परिस्थितियों से,
किसी की गरीबी से लड़ायी है
तो किसी की अमीरी की चोटी की।
किसी के समाज से तो किसी की समाज में एक बड़े बदलाव से।
आप किससे लड़ रहे है?
अगर नही, तो क्या आप जिन्दा है?-