धागों संग टंगे हम फुर्सत के पल तलाशते है कुछ सांसे ज़िंदगी से कुछ तुम्हारे लिए कुछ अपने लिए उधार मांगते हैं, गर रुसवा हुए ख्वाब ऐ रात तुझसे हम न कभी इन पलकों में नींद मांगते हैं!!
हाँ व्यथित हूं बेशक बुनियाद में दरारे दिखती है और उन्मे पनपते डोर जो बुन रहे है अंधकारमय जाले बड़ी मजबूती से खोखले धागों से और बड़ रहे है चहुँ और बंद कर रहे है सभी छेद कि उजाले की किरणे विच्छेदित न कर सके और धरातल सरक जाये पूर्ण अँधकार के गर्भ में!!— % &— % &