उधार ही सही
कुछ बाकी तो रहा,
हाँ सांसे कमबख्त
उलझाए रखती हूं ,
मुद्दत से खड़ी बेजार हूं
तेरी उम्मीद में
पलकें बिछाये रखती हूँ !!-
कंबख्त हम ही अजनबी रास्तों से दिल लगा बैठे!!
धागों संग टंगे हम
फुर्सत के पल तलाशते है
कुछ सांसे ज़िंदगी से
कुछ तुम्हारे लिए
कुछ अपने लिए
उधार मांगते हैं,
गर रुसवा हुए ख्वाब
ऐ रात
तुझसे हम न कभी
इन पलकों में
नींद मांगते हैं!!-
उलझनों में उलझा
रहने देना
ना सुलझाना
मेरे मौला
गर सुलझा दिये धागे
बिखर जाऊँगा,
तुझसे छूट जाऊँगा!!!-
टूटे मोतियों के ज़ख्म दिखाऊ किसको
माना था जिसको बड़ी शिद्दत से साहिब
रुख़सत हुआ, अब बुला लाऊं किसको!!-
हाँ व्यथित हूं
बेशक
बुनियाद में दरारे
दिखती है
और उन्मे पनपते
डोर जो
बुन रहे है
अंधकारमय जाले
बड़ी मजबूती से
खोखले धागों से
और बड़ रहे है
चहुँ और
बंद कर रहे है
सभी छेद
कि उजाले की किरणे
विच्छेदित न कर सके
और धरातल
सरक जाये
पूर्ण अँधकार के गर्भ में!!— % &— % &-
न सही की चाह न गलत की उम्मीद
मुझे तो बस तेरी हो के रहना है
तुझे अपना बनाना है !-
संगीत के कोई नोट्स नही होते
संगीत शून्य और आत्मा के मध्य बंधा एक बांध है-
और हवा के झोंकों से बदबख्त
सारी तीखी यादों की सुइयाँ
ठीक जिगर को चीरती
हर्फ़ दर हर्फ़ चुभती चली गयी..-