विमला पुंडीर   (विमला पुंडीर)
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खुद को मैं खुद ही पहचानूं,
तू जाने या प्रभु मेरा।
Joined 28 May 2019


खुद को मैं खुद ही पहचानूं,
तू जाने या प्रभु मेरा।
Joined 28 May 2019


मंजिल कहाँ कौन सी राहें,
कहाँ मिलेगा लक्ष्य ठिकाना,,
सोचा बहुत , पूछ कर देखा,
मंजिल को खुद ही पहचाना।

शनैःशनैः फिर कदम चल पड़े
मंजिल आई स्वतः पास में,
मंजिल कोई और बताये,
आखिर कब तक रहें आस में।

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गुरु को प्रणाम गुरु अभिवादन,
श्री गुरु चरणों में नित वन्दन,,
हैं कोटि दण्डवत सुखद नमन ,
नित नित करिये श्री गुरु पूजन।
गुरु पूजनीय अभिनन्दनीय,
गुरु श्लाघनीय सम्माननीय ,
गुरु से ही जीवन ज्योतिर्मय,
गुरु है प्रातः अभिवादनीय।
गुरु ने जीवन को सार दिया,
गुरु ने ही भव से तार दिया,
गुरु ने चरित्र निर्माण किया,
गुरु धारणीय गुरु माननीय।

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होठों पे मुस्कान दिल मेंअरमान
ले कर चले बैरी बन गया जमाना,
कोई उलझा मुंह मोड़ चल दिया कोई
कोई रात दिन देने लग गया उलाहना।
थान लिया हमने भी जीत कर दिखाएंगे
चलने न देंगे कोई बहस या बहाना,
होठो पर लिये मुस्कान चलते जाएंगे
सफलता को बनाएंगे अपना निशाना।



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बहके से अल्फाज हैं मेरे
बहका सा जज्बात भी है,
मेरे तेरे बीच में प्रियतम
बहका बहका राज भी है।
बहकी बहकी कल की बातें
बहका बहका आज भी है,
बहके बहके गीत प्रेम के
बहका बहका साज़ भी है।
बहकी बहकी मन की खुशियाँ
बहका हुआ मिज़ाज़ भी है,
सपने बहक गए रातों के
कुछ निंदिया नाराज भी है।
सोहबत बहकी शौहरत बहकी
बहका सा आगाज़ भी है,
बहक गयी नादान उमरिया
बहका सा अंदाज़ भी है।

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मतवारे घुँघरारे कजरारे बादल,
घुमड़ घुमड़ बरस बुझा धरती की प्यास रे।
सूखे हैं खेत खलिहान रूख जंगल
जल बिन पंछी जलजीव हैं उदास रे।

आता है नित नए रूप धर जादूगर,
पुरबा के झौंकों संग जाता है भाग रे,
अपलक ताक रही बिरहिन गगन में,
लग रही जाके करेजवा में आग रे।

बरस जा सरस जा तरसा न मनवा को,
काला है रंग तेरा ओ काले नाग रे,
बैरी न बन तू तो मीत है जगत का,
काहे को अँचरा पे लेता है दाग रे।


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कहीं संत्रास के बादल कहीं सुखरास के बादल,
हमारे मन पे छाए हैं सहज मधुमास के बादल।
किसी ऊंची पहाड़ी से उड़ा लाई है पुरवाई,
हमारे घर में घुस बैठे तेरे आवास के बादल।
न जाने कितने सालों से मेरा आंगन नहीं भीगा,
उतर आए है छत पर इस बरस उनचास के बादल।
कभी दरिया में डूबे हैं कभी सागर में तैरे हैं,
लिये हैं बर्फ आँचल में अचल कैलास के बादल।
कभी बरसे कभी सरसे कभी बिजली गिराते हैं,
कभी उन्मत्त करते हैं सजल आकास के बादल।
कहो इनसे कि अच्छा है नहीं इतना कहर ढाना,
भिगो देंगे सकल जन को ये सावन मास के बादल।



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आप चाहें तो बात हो जाये,
बातों बातों में रात हो जाये,
रूबरू हो न पाए मुद्दत से,
ख्वाहिशों की बरात हो जाये।

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शाम सिंदूरी थक कर बैठी
श्यामल सा आँचल डाले,
दरक रहा दिन धीरे धीरे
मधुरिम सा सपना पाले।
कोई दुखी चहकता कोई
अपना अपना लेखा है,
जाने भाग्य कहाँ खुल जाए
यह भी किसने देखा है।



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झूम कर बहती हवाएं और खनकते जाम,
आज की सारी सदाएं आपके हैं नाम,
आपके बस आपके हैं छोड़ कर सब काम,
कौन जाने हो न जाए ज़िंदगी की शाम ।

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न हम संभले न तुम बदले ,चली है जिंदगी यूँ ही,
कि जैसे रेल धड़ धड़ धड़ किसी पुल से गुजरती है,

यही है रस्म दुनिया की, यही चलगत ज़माने की।

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