नशे के आगोश में
एक ख़्वाब देखा
जहर के प्याले में इश्क़ का इतर देखा
इस हक़ीक़त को सच समझू या झूठ??
बेवजह ही मैने ख़्वाब को बेनकाब देखा...-
अपने कलम को यूंही रोक दिया ।
मैने उस अधूरे ख्वाब में ,
अपना... read more
हम ख़्वाब देखे
और हकीकत में मुकम्मल हो जाए
इत्ती सी जिंदगी का मै क्या करूंगा
इससे खुबसुरत ख़्वाब अधूरे रह जाए ....-
जब दवा ज़हर हो ,
तो इस मर्ज का इलाज़ किससे करवाएं ??
हम दर्द में ही महफूज़ हैं
धोखे में क़ैद जिन्दा कब तक रहा जाए !!-
अपने नजरों से मेरी खामोशी को पढ़ना,
ये हंसना और हंसाना तो मेरी मजबूरी हैं ग़ालिब...-
जवाबों के जज़्बात में उलझाता कौन हैं?
मेरा सवाल भी बड़ा अजीब था..
इश्क़ तुझसे हैं
तुझे इश्क़ से क्या ही नफ़रत हैं??
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इश्क़ की बस दो प्याली!!
एक मैने पिया नहीं..
औरो को चढ़ा नहीं!!
बोतल भी बदल गया,
पर किसी के रंग मे इस कदर झूमा नही....
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साज़िश, गुनाह या हवस
उसमे कुछ तो बाकी होगा ??
बेवजह ऐसे ही नहीं ,
राजनीति का हवाला होगा..
कुछ गुनाह अब भी बाकी होगा !!
इंसाफ से क्या ही मिलेगा ??
आज चर्चा कल कोई और समाचार होगा....-
उसकी खूबसूरती ही झूठी हैं !!
जख्मों के दर्द से कभी सम्पूर्ण ,
तो कभी अधूरी दिखती हैं ...-
कागज़ पर लिखी कहानी बदल गई हैं ??
कहानी वहीं है साहब !!
शायद कागज़ ही बदल गई हैं ..-