तुम हो भी तो चाय के जैसी
कभी मीठी
तो कभी फीकी
कभी गाढ़ी
तो कभी हलकी उलझी सी
मेरी सुबह की शुरुआत हो
मेरे शामों का राज़ हो
मेरे हर सरदर्द का ईलाज हो
कभी चेहरे की मुस्कान बनती हो
कभी मेरे तन्हाई का साज़ बनती हो
कभी रूठी सी
कभी मीठी सी
कभी आग बबूला हो के उबली सी
मेरे हर रास्ते का साथ हो
मेरे हर मर्ज़ का ईलाज हो
तुम हो भी तो चाय के जैसी-
हमने देखा है रातों को जागकर
सुबह होने में कभी कभी कई साल लग जाते हैं-
कहानी नहीं किस्से सुनाने वाला चाहिए
मुझे नहीं रोना ताउम्र यादों के सहारे
मुझे तो बस मेरे हिस्से वाला चाहिए-
कुछ शब्द जो अधरों पे आ के ठहरे
उन्हें बोलने की हिम्मत कर पाया ना कभी
जो किसी ने नयानों को भी देख लिया होता
कुछ कहने की जरुरत पड़ती हीं ना कभी
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उसके ना रहने पर भी जब मैं बातें उसी से करता हूँ
मुझे समझ लेना चाहिए
कि मैं उसके ही प्रेम में रहता हूँ
ऐसा कहूँ अगर कि वो मेरी दुनिया है
तो गलत होगा
मैं तो उसकी बनायी प्रेम की दुनिया में ज़िंदा परिंदा हूँ-
कभी कोई आए
आँखों से पढ़ के
अनछुए बातें कह जाए
जिसे किसी ने अब तक ना समझा
वो बस उस तक आ जाए
जब कभी दूर कहीं दिन ढले
हवाएं यूँ हीं आ कर उसका हाल बताए-
आज हमने एक दुनिया बेची
और एक दीन ख़रीद लिया
हमने कुफ़्र की बात की
सपनों का एक थान बुना था
एक गज़ कपड़ा फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी ली
आज हमने आसमान के घड़े से
बादल का एक ढकना उतारा
और एक घूँट चाँदनी पी ली
यह जो एक घड़ी हमने
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगे
- अमृता प्रीतम
जन्मतिथी पे विशेष-
उनसे बड़ा ना कोई प्रेमी है, ना कोई वादक और
ना उनसे बड़ा कोई ज्ञानी।
कृष्णा सिर्फ देव नहीं हमारे पूर्वज नहीं
वो तो एक सोच हैं
अपने आप में एक संसार हैं
जिन्होंने एक नये युग का निर्माण किया
जिन्होंने हर पग प्रेम का भान दिया
जिन्होंने गीता जैसा ज्ञान दिया-
मेरी नज़र से खुद को तू देख तो कभी
तूने शायद खुद को आज तक देखा हीं नहीं-
सारी दुपहर तुझे ढूंढ़ते हुए
जब मैं सांझ को अपने आँगन में आया
धुंधली होती जो शाम की परछाई थी
वो अक्स आज भी याद आता है
उस शाम बारिश आ कर यादों को बहा ले जाने वाली थी
पर ना जाने क्यूँ दरवाजे पे आ के वो ठिठक गयी
और जो चेहरा मेरे नज़रों में आया
उसके चले जाने का ग़म मुझे आज भी है-