ग़ज़ल
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विक्रम मिश्र अनगढ़
(विक्रम मिश्र "अनगढ़")
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स्वयं के बारे में बताना कुछ भी शेष नही है
या यूँ कह लीजिए कि इस लायक नही हूँ कि अपना बखान ... read more
या यूँ कह लीजिए कि इस लायक नही हूँ कि अपना बखान ... read more
Joined 16 February 2018
25 APR 2021 AT 9:09
आन खड़े द्वारे प्रीतम, आतुर आलिंगन करने को
संत्रास सकल मिटाने को अरु जीवन चंदन करने को
साँझ हुई , नयनों के आगे, घन रैना है अब सन्मुख
कहार पालकी साथ लिए, मेरा अभिनंदन करने को
अब द्वंद छिपा अंतर्मन में कि, कैसे मिलूँ मैं प्रीतम से
उनके साथ चलूँ स्वयं या, बाहर निकलूं इस तम से
मचा हर तरफ कोलाहल, हर हृद तैयार है क्रंदन को
आन खड़े द्वारे प्रीतम, आतुर आलिंगन करने को-
21 APR 2021 AT 20:25
हे राम ! तुम्हारे कौशल में
फैली कैसी दुश्वारी है
संकट में है हर एक मनुज
विपदा ये कैसी भारी है-