Vikrant Jain   (वि•जै•)
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मक़सद वाह-वाही बटोरना नहीं, बस दिलों को छूना है।🙃
Joined 24 June 2019


मक़सद वाह-वाही बटोरना नहीं, बस दिलों को छूना है।🙃
Joined 24 June 2019
18 NOV 2022 AT 14:34

जाने क्यूँ हर शक्स यहाँ दौड़ रहा है,
इस अंधी दौड़ में क्यूँ, नैतिकता को पीछे छोड़ रहा है,
मैं आगे तू पीछे, सब यहीं छूट जाएगा,
क्या खोया क्या पाया, क्या साथ में ले जाएगा।

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14 NOV 2022 AT 20:29

बातें तो जनाब चाँद सितारों की किया करते थे,
धरती पर दो क़दम क्या चले, कि पैर लड़खड़ा गए।

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8 NOV 2022 AT 13:15

मेरी क़लम में अब, वो बात ना रही,
मयखाने में जी बीते, वो रात ना रही,
मेरे बिना ही महफ़िलें सजा लो, ऐ दोस्तों!
कि अब मेरे पास वो शायरी वाली सौग़ात ना रही।

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7 NOV 2022 AT 9:29

तेरे शहर की हर गली में तुझे,
मिलेंगे,
तुझे पाने की ख़्वाहिश लिए, दर-दर भटका जो हूँ।

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26 OCT 2022 AT 8:59

ऐ खुदा! मैं जानता हूँ, तू बैठा है छिप के कहीं मेरे ही अंदर,
तुझे ढूँढू कैसे, है शोर! है अंधेरा! है झूठ का गहरा बवंडर।

ऐ खुदा! हाथ पकड़ मेरा, मुझे खींच ले तेरी ओर,
मैं मिल जाऊँ तुझमें बनके बूँद सा, तू जो इक गहरा समंदर।

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4 DEC 2020 AT 9:44

उनके चेहरे की हर ख़तकशी से वाक़िफ़ हूँ मैं,
कई मर्तबा जो उनका चेहरा अपने ज़हन में तराशा है।

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24 JUN 2019 AT 18:04

ज़िंदगी की पहेली उलझती सी जा रही है, जज़्बातों से दूर फिसलती जा रही है।
दूर दूर तक अपनों का नामो निशाँ नहीं दिखता, बस गैरों की भीड़ बढ़ती जा रही है।
ख़ुद को ही खोता जा रहा हूँ इस भीड़ में, हूँ तन्हा मैं अकेला, जैसे बँधा किसी ज़ंजीर में।
यूँ तो ज़िंदगी मुझे तुझसे शिकवा कुछ ख़ास नहीं, पर तुझे जीने में भी मज़े वाली बात नहीं।
हर वक़्त न जाने क्यों एक तलाश सी रहती है, तू बनेगी मेरे लिए बेहतर ये आस ही रहती है।
खुदा से भी नाता अब कुछ ख़ास नहीं रहा, हूँ अंदर से मैं ख़ाली, कोई एहसास नहीं रहा।
क्या मक़सद है तेरा, मुझे बता ऐ ज़िंदगी। इस पहेली को ख़ुद ही सुलझा ऐ ज़िंदगी।।

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14 DEC 2021 AT 8:33

तेरी नज़दीकियों के साये में मुझे रहना है उम्र भर,
कि तुझसे पल भर की दूरी भी मुझे गवारा नहीं।

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17 MAY 2021 AT 9:52

किसी हसीं ख़्वाब सी हो तुम,
तेरी क़ुर्बत के ये पल भी किसी ख़्वाब से ही हैं।

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16 MAR 2021 AT 13:21

हाँ! मेरे तसव्वुर में तो हमेशा से ही था तू, बस
तुझे हूबहू देख कर तसव्वुर थोड़ा और निखर गया।

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