हम समाये हुए है एक दूजे में, कैसे दूर हो पाएंगे?
रूठने-मनाने की "रस्मों" को पार कर चुके है अब तो,
रिश्ते जो मजबूत है ही, वो फांसलों से मजबूत कैसे होंगे?
सोच लो फिरसे एकबार, बिछड़ने से फ़िक्र और बढ़ेगी.
हरे कृष्ण प्रणाम
-
YOB. 1950
Academic. S.S.C. 1966
... read more
वो बात नहीं, उनकी भक्ति में तो कोई नशा नहीं होता है
बस एक शक्ति है जो संसार के हर नशे को उतार देती है,
और जो हम को अपने आपके परमात्मा से मिला देती है.
हरे कृष्ण प्रणाम-
हम रुक भी ज़ाते अगर,
फ़िर आपको कोई बुला लेता,
फ़िर क्या?
ख़ामोशी ही ख़ामोश हो जाती?
ठहरना तो अक्सर कुछ पल का होता है,
जुदाई तो अनिश्चित कालीन होती है.
सम्हलना ही होगा अपने आपसे.
हरे कृष्ण प्रणाम-
कई बातें ऐसी भी होती है जो,
हम देख भी नहीं पाते और
मेहसूस भी नहीं कर पाते.
फिरभी कहीं कुछ होने का
जब रूहानी एहसास होता है.
तब परवाह तो हो ही जाती है.
हरे कृष्ण प्रणाम-
शादी की आखरी वज़ह यह भी है,
जो लोगों की समझ में नहीं आती,
प्रेम (!) होने पर साथ साथ रहने की,
जो ईच्छा होती है,
लेकिन बिना शादी के इजाज़त कहां हैं?
"Live in relationship"
तो अभी अभी ईज़ाद हुई हैं.
हरे कृष्ण प्रणाम
-
कोई बात नहीं,
कल शाम को मिलते है,
चाय के साथ साथ चाह भी होगी.
जिंदगी का सफ़र भी ख़ुश खुशाल.
अब तो ख़ुश?
हरे कृष्ण प्रणाम-
इलाइची वाली चाय क्यूँ ?
पलभर के लिये कलम को,
बस मेरी तरफ से आती हवा में लहरा दो.
हरे कृष्ण प्रणाम-
किसी के लिये या किसीके प्रति
एक तरफा चाहत का हो जाना
स्वाभाविक और साहजिक है,
ऐसी चाहत एक तपश्चर्या है,
जो आसक्ति से परे है और
उसे पाने की इच्छा शून्य है.
उनके सुख और खुशी के प्रार्थी,
वो जिसे चाहे के प्रति भी स्नेह,
अगर किसी और के साथ हो जाये,
तभी उनके औऱ उनके साथी के श्रेय और प्रेय के लिए भी प्रार्थी,
उन पर आने वालीं कोई भी आपत्ति को गुप्तता से निर्मूल करने के लिये प्रतिबद्ध.
क्या यह सम्भव है?
हरे कृष्ण प्रणाम-
स्त्री के मन की
गहराई भी कितनी सरल है,
कोई भी धोखा दे जाता है.
अनंत हैं स्त्री की सब्र,
जो कब्र के तले भी
कब्र तक आने का इन्तेज़ार करती है.
आखिर किस लिये इतनी बेताबी?
हरे कृष्ण प्रणाम
-
कोई ऐसा भी है जिनके जीने के लिये हम बहाना है,
कोई ऐसे भी है जो हम से कुछ तमन्नाएं रखें बैठे हैं.
क्या पत्ता हम किसीके वज़ूद की वज़ह बनें हुए है.
हरे कृष्ण प्रणाम-