स्वर्ण लंका में बैठा लोभी चाल ऐसा चला
मृग रूप में मारीच राम को छल के,लक्ष्मण लक्ष्मण चिलाया।
पार करा के लक्ष्मण रेखा,स्वयं साधु वेश में माता सीता को लंका हर लाया।।
भटकते भटकते सीता के खोज में,सबरी के जूठे बेर खाए,हनुमान जैसे भक्त पाए।
सुग्रीव को मित्र बना के बाली को हरा के राज्य दिलाए ।।
माता सीता की खोज में लंकादहन कर हनुमान खबर लाए,वानरसेना संग नल-नील रामसेतु बनाए।
लंका पहुंच कर रावण तक नीति की बात पहुंचवाया, नीति की बात को रावण ने ठुकराया।।
दर्प,दुष्टता के कारण स्वयं अपना काल बुलाया। लंकापति को मार कर रघुपति ने लंका पर विजय ध्वज लहराया।।
पूरा कर 14 वर्ष के काल को,
लौट आए अपने जन्म भूमि विख्यात अयोध्या को।।
ऐसे रघुनंदन के,चरणों में मेरा है वंदन...
राम कथा सुनाऊं,राम राम नाम गाऊं
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