आज एक बार फिर वो वक़्त दुबारा
आया है
मेरी कलम ने मुझे अपने पास बुलाया है
जज़्बात दिलों के शब्दों में जब मैं उतारता था
सच कहूँ तो जमाना मुझे शायर पुकारता था
ना जाने कैसे उलझ गए धागे जिंदगी के
शब्दों को कलम में पिरोना ही भूल गया
एक बार फिर वो दिन लौट आया है
मेरी कलम ने जिंदगी भर साथ देने के वादे पे
गौर फरमाया है
जिस कलम ने दिया मेरा साथ
क्या लिखूं उस कलम के लिए
नहीं हूं मैं लेखक इतना खास
इतनी सी गुज़ारिश है मेरी
उन शब्दों से जो आज तक थे मेरे लबों के पास
मेरी ये कलम और मेरे ये शब्द
जब तक है मेरे साथ
सच कहता हैं विक्रम उतरते रहेंगे कागज़ो पे मेरे जज़्बात
मेरी ये कलम जब तक है मेरे साथ
✍️विक्रम रुंगटा
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