Vikram Beniwal   (∞ VK ∞)
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Joined 20 October 2019


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10 OCT 2023 AT 19:45

राधा–श्याम एक है बस बीच गात भीत है!
तुझे निहार स्तब्ध मैं तू मात है की मीत है!

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6 OCT 2023 AT 21:52

कितना कुछ सुना जाते हैं हमें बिना बात के
हम अपने हालात देखकर कहां कुछ कहते हैं।

करने दो इन्हें अपने घमंड की खातिरदारी
बर्दाश्त के बाहर हो हम उस हद तक सहते हैं।

ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे दुनिया की भीड़ में
हम वफादार लोग हैं साहब अकेले रहते हैं।

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4 OCT 2023 AT 19:57

बुराई माणस नै चाल्दै चाल्दै मिलजे है
तम आछी बात मैं रळो मेरे भाई।

आखरी चक्यां तै नाश हो जाया करै
बदी तै सौ कोस टळो मेरे भाई।

बता दिया आग्गै कुआं है देख कै चलिए
फेर भी पड़ना है तो पड़ो मेरे भाई।

माड़ा किसे का सोच्या ना करया
फेर भी जे जळो हो तो जळो मेरे भाई।

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3 OCT 2023 AT 1:08

किसे धौरे फालतू टेम कोनी मेरी तरियां
बिना मतलब कै इब किसनै सताऊं?

दो च्यार जणे जाण्या करदे, वें जा लिए
“मैं इसा कोनी यार” इब किसनै बताऊं?

इब यें बोल भी गडण लाग्गे लोगां कै
बोलूं भी नी, लिखूं भी नी तो कड़े जाऊं?

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2 OCT 2023 AT 21:39

अच्छे से निभाओ अपने किरदार को यारों,
तुम मेरी जिंदगी की किताब में लिखे जाओगे।

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30 SEP 2023 AT 13:40

जो मने अपना मान्ने हैं उनका
दिल तै साथ निभाया, अर आगे भी निभाऊंगा।

भरोसा करणा ए है तो मेरी बातां पै करल्यो
हनुमान थोड़ी हूं जो छाती पाड़ कै दिखाऊंगा।

मानूं हूं, ईबे धेल्ला भी कोनी पल्ले, पर
कोई दुख हो तो बताईयो, गल्ले खड़या पाऊंगा।

अपनी आदत कोनी किसे नै गुमराह करण की
जितना ज्यांका बेरा होगा उतना ऐ बताऊंगा।

मनै बेरा है जिस ‘गरा’ मैं कल्ला छोड़्या हूं ‘लोगाँ नै’
डह पड़के सही चालणा तो मैं भी सीख जाऊंगा।

जे तम मनै बाल बराबर नहीं मानते तो सुणो
थारा भी दुनिया पै वजूद है, मैं भूल जाऊंगा।

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30 SEP 2023 AT 13:37

जब माफ करने से शांति मिलती है
तो घृणा के नरक में क्यों जीया जाए!

जब शांति सा शीतल कुछ भी नहीं
तो क्रोध का जहर क्यों पीया जाए!

समाधान हो सकता है ‘छोड़ो’ कहने से
हर बात को दिल पर क्यों लिया जाए!

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30 SEP 2023 AT 13:35

हम खुद दिल के साफ हों तो
दिल काला किसी का कहां दिखता है!

सत्य की तलवार हो हाथ में तो
बेहया झूठ किसी का कहां टिकता है!

चोट लगने पर याद आती है सबको
बेवजह मरहम किसी का कहां बिकता है!

दुखों को गिनाते फिरते हैं हर गली में
हिसाब खुशियों का कोई कहां लिखता है!

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30 SEP 2023 AT 13:31

शर्म से कट गिरे तुम पर उठी उंगली
स्वयं ही, खुद को इतना निष्पाप रखिए।

ख़ुद–ब–ख़ुद फना होंगे दुश्मन तुम्हारे
अपनी तरफ़ से सबको सदा माफ़ रखिए।

खुशी तुम्हारे अन्तर से पैदा होगी
अन्तर को चेहरे से ज्यादा साफ़ रखिए।

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28 SEP 2023 AT 21:01

कच्चे धागों से बना था आशियाना मेरा
मुसाफ़िरों की आवाजाही में टूटता ही गया।

बुरा किसी का क़भी नहीं चाहा मैंने
जिसको आईना दिखाया वो रूठता ही गया।

असल में, करीबी कोई था ही नहीं मेरा
जिसको जिगरी माना वो मुझे लूटता ही गया।

शायद! कुछ बड़ी खामियां हैं मेरे लहज़े में
जिसको मैने 'ख़ुदको' सुनाया वो छूटता ही गया।

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