तुम... शायद वक़्त के साथ बदल गए,
या फिर मेरी यादों से निकल गए।
आज तुम्हारी याद में मैं हूँ,
पर मेरी याद में तुम नहीं।-
अंदाजा मुझे भी न था इस दर्द का,
जब मैने किसी को नजरंदाज किया था।
तुमको भी होगा इस दर्द का एहसास,
जब तुमको कोई नजरंदाज करेगा।।-
ये इश्क़ है या कोई आदत पुरानी?
तेरा ख़्याल ही रहा...
और हम उसी में खोए रहे,
जैसे कोई ख़्वाब जो नींद से भी गहरा हो।
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"नाराज़गी हक़ है तुम्हारा,
पर नज़रअंदाज़ करोगे तो कैसे जिएंगे..."
"सुन लेंगे तेरी खामोशियाँ भी हँसकर,
पर यूँ मुंह मोड़ लोगे तो साँसें थम जाएँगी..."
"नाराज़गी हक़ है तुम्हारा,
पर नज़रअंदाज़ करोगे तो कैसे जिएंगे..."-
"तुझमें बुराइयां हो सकती हैं—
पर तू बुरा नहीं हो सकता…
कम से कम मेरी नज़रों में तो बिल्कुल नहीं।-
इस बार जब तुम आओगे,
तो शिकवे नहीं होंगे,
सिर्फ़ वो लम्हे होंगे
जो हमने ख़्वाबों में बुने हैं।
मैं थाम लूंगा तुझे अपनी बांहों में,
जैसे कोई मौसम
अपने सबसे प्यारे फूल को छूता है।
इस बार…
तुम रह जाना — मेरे पास
कुछ देर, कुछ और देर तक,
या शायद… हमेशा के लिए।
इस बार जब तुम आओगे।।-
इस बार जब तुम आओगे,
तो लौटना मुमकिन न रहेगा —
क्योंकि इस बार,
मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा…
मैं तुम्हें खुद में रख लूँगा —
धड़कन की तरह,
साँसों की तरह,
या शायद…....-
मैंने सीने में धड़कनों को तन्हा चलते देखा है,
कुछ अधूरी सी दुआओं को पलकों पे जलते देखा है।
हर चेहरा, हर नाम, हर साया परखा मैंने,
पर जब तुझे देखा…
"तुमसे अच्छा कोई नहीं है"-
जब मैं थक कर गिरा,
और दुनिया हँसने लगी,
तब एक स्पर्श था—काँपता नहीं,
पर थामे रहा।
वो मेरी माँ थी—
जिसकी चूड़ियों में
मेरे सपनों की खनक थी,
जिसकी आँखों में मेरी हर
हार की चिंता और हर जीत की चमक थी।
वो मुझे गढ़ती रही…
जैसे कोई कुम्हार,
गीली मिट्टी को सहलाता है,
हर चोट सहकर भी,
बस मेरे आकार को संवारती रही।-
माँ… कोई तस्वीर नहीं है,
वो एक फ़्रेम सी है जो तस्वीरों को संभाले रखती है।-