Vikash Sharma Utkarsh Royal   (विकाश शर्मा (उत्कर्ष)🖊️)
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Joined 20 March 2020


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Joined 20 March 2020
8 JUN 2024 AT 14:29

पेड़ लगाओ अभियान में जुड़े ,
कम से कम 2 पेड़ जरूर रूपण करे 🛣️

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9 FEB 2024 AT 17:23

तेरी चाहत न होती तो मेरे दुश्मन न होते
दुश्मन भी है अपने भी है , बस दिखावे के है।

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22 JUL 2023 AT 9:41

चंद्रमा की सतह पर पहुंचे या पहुंचे सूरज की सतह पर
अगर धर्म और लाज लज्जा न रखी तूने
स्त्रियो की, जो जगत की शान है ,
हुए मणिपुर की घटना ने ऐसा कुछ बतलाया है
एक स्त्री को निवस्त्र नही किया, ये धूर्त तूने जीवन के पांच तत्वों को नग्न किया है  धरा, आकाश, समीर, अग्नि और नीर है 

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22 JUL 2023 AT 8:16

लोगो की अंतरात्मा कुछ ऐसी शर्मशार हो गई है
उससे पहले निर्लज्ज हुए होंगे ना वस्त्रहीना स्त्री में
एक देह, एक शरीर, एक हांड़ मांस का पुतला,
आज की क्या है वेदना जो निर्लज्ज बना दिया स्त्री को।

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20 FEB 2023 AT 13:08

शीर्षक "वक्त की मार"
एक वक्त के बाद हर कोई गैर हो जाता है
जिंदगी भर के लिए किसको समझू अपना ,
अब यह भी वहम नजर नही आता है
जिंदगी में वक्त ऐसा भी रहा है
जब जिक्र पहले आपका बाद में खुद का जिक्र किया है,
एक वक्त के बाद जैसे दिन ढल जाता है,
वैसे ही ढल कर छोड़ा है अपने,
पता नही था एक वक्त ऐसा भी आयेगा,
जब आप मौसम की तरह क्षण भर में बदल जाओगी
एक वक्त के बाद हर कोई गैर हो जाता है
अपना प्यार भी टूटा एक वक्त के बाद ,
एक वक्त के बाद तरसेगी तेरी अंखियां मेरी एक झलक के लिए,
एक वक्त के बाद हर कोई गैर हो जाता है,
एक वक्त ऐसा भी आता है जब सब कुछ खत्म हो जाता है

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8 FEB 2023 AT 14:33

ये हाशता हुआ चहेरा खामोश क्यों है
न जाने खामोशी के पीछे वजह क्या है
लगता है आज फिर किसी ने जख्म पर वार किया है
पर मैने इसे लोगो पर विश्वास क्यों किया है,

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8 FEB 2023 AT 14:29

भीड़ में मन एकांत सा है आज मन कुछ शांत सा है,
अब न कुछ अरमान सा है अब सारा जहान वीरान सा है,

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8 FEB 2023 AT 14:21

प्यार का इजहार कारण कोई उपधि प्राप्ति करना नही होता है, प्यार को बनाए रखना किसी उपाधि से कम भी नहीं होता🙂

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16 JAN 2023 AT 11:41

किसी की यादों ने बीमार किया है,
ये खुदा ऐसा क्यों प्रहार किया है ,
खुद न समझा इस बीमारी को
ऐसा जुल्म ठान किया है,
इस बीमारी का नाम इश्क मान लिया है
ये खुदा ऐसा क्यों प्रहार किया है ,
किसी की यादों ने बीमार किया है,

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27 DEC 2022 AT 14:58

चित्र भी हूं विचित्र भी हूं
अपने अंदर की भावना भी हूं
जैसा देखा मन वैसे प्रसन्न भी हूं,
जैसा देखा तन वैसे मगन भी हूं,

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