मुझे याद हैं, वो रात अंधेरी नहीं थी,
बस चांद ने हि मुझपे नज़र फेरी नहीं थी।-
तेरी कातिलाना आंखों से मैं घायल हो जाऊं,
तेरे इस हुस्न के रंगत का मैं कायल हो जाऊं,
गर तू चाहे तो बना दे हसीं नैनों कि मधुशाला,
पि लूं सारी मदिरा, अगर मैं काजल हों जाऊं।
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महफ़िल, मयखाने और शहर कि बात करते हो,
होते हो जब मसरूफ़,
तो क्या गांव के घर की बात करते हो?
गुजरे हैं चंद लम्हे,
मगर पूरी उम्र कि बात करते हो,
अरे!, पगला गए हों?
ये किस कदर कि बात करते हो?-
मन से हिन्दी, तन से हिन्दी,
हिन्दी पहचान हमारा हैं,
हिन्दी गंगा, हिन्दी हिमालय,
हिन्दी से हिन्द हुंकारा हैं।
हिन्दी दिवस कि शुभकामनाएं...-
ये जो तेरे नैनो से तेरे बिंदी कि वफ़ा होती हैं,
खुदा कसम इस दिल पे कहर ढाने कि वजां होती हैं।-
राधे राधे रटत रे मनवां अब जो आस लगायों रे,
कान्हा जी के प्रित में जाके आपहू गोता खायों रे,
प्रेम जो मिल्हीं कृष्ण नगर मा, अदभुत इ संयोग भयो,
मैं कान्हा का, कान्हो मारो, मोह-माया से वियोग भयो।-
नाजुक था प्रेम उसका
गुलाब कि पंखुड़ी जैसा
छु गई मन के वरक को
महक उसकी किताबों में रह गईं.......-
कुछ इस कदर मुकद्दर का मज़ाक चल रहा हैं,
दिन थम सा गया और तन्हा रात चल रहा हैं,
कश्मकश कि दरार में फंसी है जिंदगी हमारी,
जिस्म जकड़ गया है, सिर्फ़ सांस चल रहा हैं।
कारवां-ए-जिंदगी-
शायर कि ख्वाहिश.......
करता हूं मोहब्बत कि कोई दिल तोड़ जाए,
गम, दुःख और सारी यादें छोड़ जाए,
होना चाहता हूं मुंतशिर से मुकम्मल,
मेरे बिखरे अल्फाजों को इक साथ जोड़ जाए।
कारवां-ए-जिंदगी-