कहां गए वो दिन कहां गई वो बातें।
जब लोग मिल जुलकर करते थे 'सुख-दुःख की बातें।
बदल गई परम्पराएँ 'बदल गया रहन-सहन हमारा
आज पड़ोसी कि तरक़्क़ी देख 'जल जाता हैं पड़ोसी बेचारा।-
माँ-बाप इस्से मिले देख छोरा जम्मा लक्क़ी '
खार कोनी खांन्दै कदे देख कह तरक़्क़ी।
ईत्तर सै यार र ग़ुलाम कोनी राख्ये '
हालातां आगे हारा इस्से जाम्म कोनी राख्ये।
दुनियांदारी नैं यो दिमाक तेज करया '
मन्ये भेक़्क़ी कदे गोज़ म्ह बादाम कोनी राख्ये।
गवाया बहोत कुछ मन्ये पाया बहोत कुछ '
ज़िन्दगी म्ह ज़िन्दगी का पुनियां खेल राख्या सट्टा।
विकास नै या दुनियां बतावें सै निक्कमा
र निकम्मा कदें कम-काम होण कोनी देंगा।-
जनवरी मैं बदले यार फेर यार बदल दिया जून मैं
बस लाग्या फेम का चश्का रै ना गदारी तेरे खुन मैं
कलाकारी सै जनून मैं जिमेदारी नै भी जीन्दा राख
ना बणा चेन तूं चमचा की सच्चा एक परिन्दा राख
हाथ मै बढिया बिन्डा राख दूर रह दौकले बन्दयां तै
इन्सानियत ऊंची राख छोटे स्टारी आले झंन्डया तै-
उलझी हुई दुनिया को पाने की जिद है "
जो ना हो अपना उसे अपनाने की जिद है!-
ये शीशे, ये सपने, ये रिश्ते ये धागे...!
किसे ख़बर है, कहाँ टूट जायें...!!-
ठगा-सा जाता हूं. .
अकसर उन अपनों से ''
जो अपने भी बनते है 'तो ठगने की नीयत से!-
दुनियां धोखा दें कह अक्लमंद हों गई "
हम भरोसा कर कह गुनहगार हों गए!-
आज तो गर्द बहोत सैं!
मन म्ह मर्ज बहोत सैं!
मैं झूठा ऐ ठीक सूं. .!
सच्चाई म्ह दर्द बहोत सैं!-
कर्म का लेखा सब नै भोगणा विधि का यों ऐ विधान सै
आच्छा माड़ा सब जाणै सैं इतणा उतणा सब नै ज्ञान सै
मैं परसों था पर काल नही था हो सकै मेरी मज़बूरी हो
जरूरी तो नहीं सै शब्द हे ना हों ज्यान्ते इतनी दूरी हो
लिखणिये का मन जियूंदा रहो कोए घणी समस्या कोनी
अर दूसरे का घर उजाड़ण आला कित्ते भी बस्या कोनी
कदे घणी कदे थोड़ी पुनियां के करले चाम की जबान सै
आच्छा माड़ा सब जाणै सैं इतणा उतणा सब नै ज्ञान सै-