vikash Bhai   (Khamosh_kalam(savingkhud)
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Joined 27 December 2017


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Joined 27 December 2017
31 DEC 2024 AT 23:24

दर्द को कहां पता कि वह क्यों ही है
सोचा कोई रस्म है तो बस यूं ही है।

ज़ख्म हरा..खून लाल..और मरहम बेरंग क्यों ही है?
सोचा काई रंग है तो बस यूं ही है।

जीत, हार, जीना, मरना सब क्यों ही है ?
सोचा कोई जंग है तो बस यूं ही है।

आसमां, आजादी, डोर सब एक ही थैले क्यों ही है ?
सोचा कोई पतंग है तो बस यूं ही है।

विकास! साल नया, तारीख नई पर हाल पुराना क्यों ही है ?
सोचा कोई रस्म है तो बस यूं ही है।
@Vikash

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17 NOV 2024 AT 16:08

क्या ही खत क्या ही जवाब मांगता
क्या ही सारे सवालों का हिसाब मांगता।

किस्सा बस कुछ कोरे कागजों का ही था.. क्या ही उनसे पूरी किताब मांगता
और नींद मेरे नसीब में ही नहीं.. क्या ही उनसे कोई ख़्वाब मांगता।।

@Vikash

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12 NOV 2024 AT 23:35

दब गई थी वो रिश्तेदारों के कर्ज़ में,
और मैं बिक भी जाता, तो भी EMI से कम था।
@Vikash

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21 OCT 2024 AT 1:04

People know us by the decisions we have taken and we know ourselves by the decisions we have not taken.
@Vikash

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12 OCT 2024 AT 13:26

अजब सा माहौल था
रावण के दहन का,
लोग खुशी से झूम रहे थे।

फिर सब जल्द ही घर को चल दिए
अंधेरा होने से पहले,
क्योंकि सब जानते थे
मुहल्ले में अब भी ढेरों रावण घूम रहे थे।
@Vikash

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2 OCT 2024 AT 23:33

मोहब्बत नहीं तेरे नसीब में 'विकास'
यूं चीखों के बीच.. गीत न गाया कर।

लाख दिखे तुझे सोने के पिंजरे..
जो खंजर दिखे..सीने के बल गिर जाया कर।।
@vikash

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13 SEP 2024 AT 22:57

बिछड़ने से पहले ज़रा सी मुस्कुराई थी वो,
मन में कुछ तो ख़ुशी थी,
बड़ी मुश्किल से छुपाई थी वो।

@Vikash

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30 AUG 2024 AT 23:24

मुझे आईना बना कर.. दीवार सजा दो
भले तुम पत्थर बन कर.. बार-बार सज़ा दो।
टूटकर देखूं सौ आँखों से तुझे
बिखेरकर मुझे.. एक आख़िरी बार सजा दो।।
@Vikash

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24 JUL 2024 AT 23:14

पत्थर, शीशे , टुकड़े शब्द नहीं जो पहुंचते होंगे उनके कान में
चुभते टूटे शीशे तो हमारे पांव को..आईने थोड़े ही हैं उनके मकान में।
©Vikash

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11 JUL 2024 AT 19:23

उन्हें मालूम ही नहीं था कि मैं तोड़ा गया हूं।
उन्हें बताता भी कौन आख़िर शीशमहल में?
©Vikash

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