दर्द को कहां पता कि वह क्यों ही है
सोचा कोई रस्म है तो बस यूं ही है।
ज़ख्म हरा..खून लाल..और मरहम बेरंग क्यों ही है?
सोचा काई रंग है तो बस यूं ही है।
जीत, हार, जीना, मरना सब क्यों ही है ?
सोचा कोई जंग है तो बस यूं ही है।
आसमां, आजादी, डोर सब एक ही थैले क्यों ही है ?
सोचा कोई पतंग है तो बस यूं ही है।
विकास! साल नया, तारीख नई पर हाल पुराना क्यों ही है ?
सोचा कोई रस्म है तो बस यूं ही है।
@Vikash-
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क्या ही खत क्या ही जवाब मांगता
क्या ही सारे सवालों का हिसाब मांगता।
किस्सा बस कुछ कोरे कागजों का ही था.. क्या ही उनसे पूरी किताब मांगता
और नींद मेरे नसीब में ही नहीं.. क्या ही उनसे कोई ख़्वाब मांगता।।
@Vikash-
दब गई थी वो रिश्तेदारों के कर्ज़ में,
और मैं बिक भी जाता, तो भी EMI से कम था।
@Vikash-
People know us by the decisions we have taken and we know ourselves by the decisions we have not taken.
@Vikash-
अजब सा माहौल था
रावण के दहन का,
लोग खुशी से झूम रहे थे।
फिर सब जल्द ही घर को चल दिए
अंधेरा होने से पहले,
क्योंकि सब जानते थे
मुहल्ले में अब भी ढेरों रावण घूम रहे थे।
@Vikash
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मोहब्बत नहीं तेरे नसीब में 'विकास'
यूं चीखों के बीच.. गीत न गाया कर।
लाख दिखे तुझे सोने के पिंजरे..
जो खंजर दिखे..सीने के बल गिर जाया कर।।
@vikash-
बिछड़ने से पहले ज़रा सी मुस्कुराई थी वो,
मन में कुछ तो ख़ुशी थी,
बड़ी मुश्किल से छुपाई थी वो।
@Vikash-
मुझे आईना बना कर.. दीवार सजा दो
भले तुम पत्थर बन कर.. बार-बार सज़ा दो।
टूटकर देखूं सौ आँखों से तुझे
बिखेरकर मुझे.. एक आख़िरी बार सजा दो।।
@Vikash-
पत्थर, शीशे , टुकड़े शब्द नहीं जो पहुंचते होंगे उनके कान में
चुभते टूटे शीशे तो हमारे पांव को..आईने थोड़े ही हैं उनके मकान में।
©Vikash-
उन्हें मालूम ही नहीं था कि मैं तोड़ा गया हूं।
उन्हें बताता भी कौन आख़िर शीशमहल में?
©Vikash-