"अकेलापन"
मुरझाए पत्तों की तरह हो गई है जिंदगी मेरी
बहुत जख्म खाए हैं मेरे दिल ने मोहब्बत में तेरी।
जब भी मैं सफर में होता हूं कभी।
हर लंबा सफर गुजर जाता है यादों से तेरी।
सुकून मिलता है मुझे अकेलेपन से
बढ़ती जा रही है दूरियां सबसे मेरी।
फूलों की तरह महकता था मैं कभी
अब तो कांटों की तरह चुभता हूं खुद में ही कहीं।
वो दिन भी अब मुझे याद नहीं
जब रात दिन दोनों मौजो से कटते थे मेरी।
अब तो बिन मौसम बरसात लगती है जिंदगी मेरी।-
मैं अपना इश्क सरेआम कर रहा हूं।
बुरा मत मानना मैं तुम्हें बदनाम कर रहा हूं।-
तुम्हारे चेहरे से अब भी आब-ए-आईना नज़र आती है।
मेरे चेहरे से तो ये कभी ना मिटने वाले आब-ए-चश्म नज़र आते है।-
तुमसे प्यार करके बड़ी अना से रहते हैं हम शहर में।
इतनी पाकीज़गी है मेरी एक तरफा मोहब्बत में।
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इकलौती तस्वीर है हमारे पास तुम्हारी उस तस्वीर में जो तबस्सुम है ना उस तबस्सुम ने मुझे किसी और का ना होने दिया कभी।
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आओ कभी बैठो मेरी बज़्म मे।
तुम भी तो सुनो कैसे पड़ता हूं मैं तुम्हें अपनी नज़्म में।-
एक उम्र होती है परिपक्वता की।
हम तो तुमसे मोहब्बत करके प्रौढ़ हुए।-
तडप रहा हू मै दर्द से मर रहा हू मै।
फिर भी कोई गम नही हस के मरूंगा मै।
फक्र है मुझे अपने आप पर सिर्फ तुम्हारा होकर मर रहा हूं मैं।-
इतने अच्छे होते हुए अतवार मेरे।
ना जीत सका मै दिल को तेरे।
पता नही कहा कमी रह गयी तुमसे बात करते हुए अल्फज़ो मे मेरे।-
मैं नहीं करता कभी किसी की ख़ुशामद।
मेरे सच्चे अल्फाज़ ही काफी है किसी का दिल जीतने को।-