"अकेलापन"
मुरझाए पत्तों की तरह हो गई है जिंदगी मेरी
बहुत जख्म खाए हैं मेरे दिल ने मोहब्बत में तेरी।
जब भी मैं सफर में होता हूं कभी।
हर लंबा सफर गुजर जाता है यादों से तेरी।
सुकून मिलता है मुझे अकेलेपन से
बढ़ती जा रही है दूरियां सबसे मेरी।
फूलों की तरह महकता था मैं कभी
अब तो कांटों की तरह चुभता हूं खुद में ही कहीं।
वो दिन भी अब मुझे याद नहीं
जब रात दिन दोनों मौजो से कटते थे मेरी।
अब तो बिन मौसम बरसात लगती है जिंदगी मेरी।
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