"वो खुद का ही होना है मुझे
दुनिया की इस भीड़ में
अपने पराए की ज़ंजीर में
मतलब की बस्ती से कुछ दूर
अपनी ही मस्ती में मशगूल
खिलखिलाके बेबाक हँसना है मुझे
अपने में और सिर्फ अपने में ही बसना है मुझे
कुछ पास रहे तो साथ रहे
कुछ दूर हुए तो छोड़ दिया
किसी की व्यस्तता ने उन्हें जकड़ लिया
तो किसी ने काम निकलते ही मुँह मोड़ लिया
सबका होकर भी किसी का नहीं होना है मुझे
बस खुद के लिए, खुद तक,
और खुद का होना है मुझे
हर जीत की हर हार की
दुखी क्षणों से लेकर मुस्कुराती
जिन्दगी के सार की
खुद के लिए निकाल समय
खुद को देना है मुझे
थोड़े बिखरे हुए खुद को समेट
फिर खड़े होना है मुझे
हर सफर की राह से
हर मंज़िल तक कुछ पिरोना है मुझे
कल्पना से पार हक़ीक़त के साथ
हर आग़ाज़ से शुरू कर हर आंज़म के बाद
खुद की खुशी ढूंढ़ खुद ही खुश होना है मुझे
आदि से अंत तक, सिर्फ़ और सिर्फ़
खुद का ही होना है मुझे"
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