vikas sabharwal   (विकास...°✍️°)
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Joined 15 February 2021


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Joined 15 February 2021
2 MAR 2022 AT 21:19

मैं बुरा हुं,
यह मैंने बहोत बुरों से सुना है।

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19 MAY 2021 AT 23:43

रंगों के शहर को ही क्यूँ पसंद करते हो??
जहां रंग नहीं उसे चुराने वाले की गलती है ।।

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9 MAY 2021 AT 7:14

हमारा रूठना लाज़्मी था उनसे ,
पर उनका यूं रूठ के जाना नही।।

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7 MAY 2021 AT 18:09

तुम कहते रहते हो सोता रहता हूँ मैं ?
पूछो मेरे सिरहाने से जो हमेशा गिला रहा !
वो चांद जो मुझे हमेशा सुनता था !
वो दीवारें जो झेला करती थी मेरा गुस्सा !
वो कंबल जिसे मेरा आलिंगन हमेशा भाया !
वो सड़क जिसने मेरे आँशु समेटे !
वो हवा जिसने मेरा धुआँ समाया !
एक अजीब सा साया ,
जो हमेशा काम आया !
मैं अपनी जिन्दगी को खुद खत्म कर ?
कभी हँसता तो कभी रोया करता था !
तुम सोचते मैं सोया करता था?

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2 MAY 2021 AT 11:25

मैं हार गया हूँ!!!
क्यूँ न एक खेल जितने वाला खेला जाए ।
परिवार ने इस कदर हराया!!!
क्यूँ न एक खेल इश्क़ से खेला जाए ।
आत्म-परिचय देता थक गया!!!
क्यूँ न एक खेल जिस्म से खेला जाए ।
मेरे हाथों ने मर्यादा खोई!!!
क्यूँ न एक खेल आंखों से खेला जाए ।
प्यारों ने हराया इस कदर!!!
क्यूँ न एक खेल दुश्मन से खेला जाए ।
मैं औरों के साथ खेलता भी कब तक!!!
क्यूँ न एक खेल खुद से खेला जाए ।

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29 APR 2021 AT 8:28

बस सामने रखी बोतल को घूर ही रहा था की,
सारी शराब मेरी आंखों में आ बसी !

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24 APR 2021 AT 22:54

मेरे ना होने से भला आज कल किसे फर्क पड़ता है,×2
इश्क़ खोने से भला आज कल किसे फर्क पड़ता है,×2
वो गीले बालों से अक्सर मुझे जगाया करती थी...
मेरे ना सोने से भला आज कल किसे फर्क पड़ता है ।
मैं चांद से परे उसकी यादों को सँजो छोड़ आया,×2
आज चांद तन्हा है भला किसको फर्क पड़ता है,×2
एक सिगरेट ना मिले तो लोग रो देते हैं,
मेरे रोने से भला आज कल किसे फर्क पड़ता है ।×2

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20 APR 2021 AT 8:08

पहले बाल सुलझे से थे ,
अब उलझ गये ,
इश्क़ करके यारों हम फंस गये ।

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15 APR 2021 AT 9:47

वो गलियां ,वो सुखें पेड़ , वो रात की सिगरेट ....
याद आएगी हमें !!
जब-जब लिखेंगे तुम्हारे लिये !!!...


शहर ने तेरे हमे तेरे अलावा एक और चीज दी थी...
आज समझ आई
"तनहाई"।

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11 APR 2021 AT 17:29

One Day...
She Came Back?
Is She!

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