Vikas Kumar   ("नादिर")
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Joined 26 January 2019


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1 NOV 2020 AT 4:57

इंसानियत से बड़ा,
कोई मजहब नहीं जग में...
कोई धर्म नहीं,
कोई ज़ात नहीं...
कोई खेल नहीं है,
जानें लेना, जानें देना...

(अनुशीर्षक ज़रूर पढ़ें)

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23 SEP 2020 AT 16:52

मुलाकातों का सिलसिला तो चलता ही रहेगा ...
पर वो लम्हे, वक्त से छीनकर लाएँ कैसे...
कहने को तो बहुत कुछ है मेरे दिल में भी ....
पर वो ज़ज़बात लफ़्ज़ों में बताएं कैसे...

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17 SEP 2020 AT 11:46

कुछ पल, कुछ दिन, कुछ महीने, कुछ साल...

पलक झपकते यूं ही बीत जाते हैं...

हमने तो कल ही चलना शुरू किया था..

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22 AUG 2020 AT 13:50

श्री गणेश तो प्रारंभ हैं,
हर एक शुभ काम के,
तो उनका होना ही काफी है
अशुभ कुछ हो नहीं सकता।

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21 AUG 2020 AT 23:21

रंगीनियां तो हैं,
पर बेचैनियां भी कम नहीं..
कुछ ख्वाहिशें ऐसी होती हैं
जो उम्र भर का चैन छीन लेती हैं..

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19 AUG 2020 AT 21:18

प्रेम का विज्ञान
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प्रेम, कूलाम के नियम जैसा होता है
इसमें "दो आवेशों (प्रेमियों) के मध्य
लगने वाला बल (प्रेम)
दोनों आवेशों के गुणनफल के
अनुक्रमानुपाती होता ही है
साथ ही उनकी बीच की दूरी के
वर्ग के व्युतक्रमानुपाती भी होता है"
मतलब दूरी कम तो बल (प्रेम) ज्यादा
दूरी ज्यादा तो बल (प्रेम) कम...

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18 AUG 2020 AT 14:29

चांद तो रातों को आया करता है,
अभी अभी जो दिखा है वो कोई और है क्या?

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18 AUG 2020 AT 12:50

याद है एक दिन
मेरे मेज़ पर बैठे बैठे
सिगरेट की डिबिया पर तुमने
छोटे से इक पौधे का
एक स्केच बनाया था
आकर देखो
उस पौधे पर फूल आया है

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17 AUG 2020 AT 21:45

चांद देख रहा हूं,
दूर बदली में छिपा,
दुपट्टे में लिपटा है..
वहीं पड़ोस में
अनगिनत तारे भी हैं
मंडरा रहे,
पर चांद तो बस मेरा है
या शायद मुझे यूं ही लगता है
पर ये एहसास काफी है..

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16 AUG 2020 AT 9:16

He
Deserves
More
Than
Six
Books.

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