44 जवानों की राख सुलग रही है पुलवामा में,
बूढ़ी माँ का ध्रुव तारा टूट गया था पुलवामा में,
अर्धांगनी की चूड़ियों की झंकार शांत हुई थी पुलवामा में,
पिता के सपने को ठेस पहुंची थी पुलवामा में,
बहन के भाई की कलाई जली थी पुलवामा में,
भाई का प्रिय अग्रज इंच-इंच कटा था पुलवामा में,
उद्दण्ड, दुष्ट ने पीठ में छुरा घोपा था पुलवामा में,
अब मैं राजमहल के कालीनों पर इंकलाब लिखूंगा,
मैं सिंहासन के गिरेबान में सवालों की बौछार करूँगा,
क्या था ये प्रपंज अब तक ना हमें पता चला,
था कोई विदेशी हत्यारा या जयचन्दों ने ही हमें छला।
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