घर से दूर रह कर भी, वो याद आती है रोज़ मुझे ।
सपनों में आ कर के, "माँ" सुलाती है रोज़ मुझे ।।
मैं इस तलाश में घर से निकला कि आज़ादी पा लूँ ।
अब ये आज़ादी हक़ीक़त में सताती है रोज़ मुझे ।।-
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ये जो चाँद छुप कर बैठा है आज बादलों में ।
इक अजीब सी बे-चैनी है दिल के मामलों में ।।-
आज आ कर मुझसे वो इस तरह से मिला ।
एक अरसे के बाद मैं आज ख़ुद से मिला ।।
और, ये, वो, मैं, तुम सब कुछ बे-फ़ज़ूल है ।
अगर जो, ख़्याल ही नहीं ख़्याल से मिला ।।-
पुरानी बातों का मुझ को अब ज़रा मलाल नहीं होता ।
जब तेरा ज़िक्र होता है, वक़्त का ख्याल नहीं होता ।।
आहिस्ता आहिस्ता गुज़र रही है ज़िंदगी, गुज़र जाएगी ।
आसानी से इश्क़ का किस्सा कोई तमाम नहीं होता ।।
खून-पसीने से लोग लिखते हैं आज किस्मत अपनी ।
मेहनत से कमाई शोहरत का आसां ज़वाल नहीं होता ।।
कुदरत का करिश्मा कहूँ तुम्हें या फिर कह दूँ फ़रिश्ता ।
तुम्हें खुदा भी कह दे कोई तो दिल, हैरान नहीं होता ।।
दर-बदर की ठोकरें खाकर आए हो "मुसाफ़िर", आओ ।
सफ़र-ए-इब्तिदा में ठोकरों का यूँ हिसाब नहीं होता ।।-
फ़र्क़ कुछ और नहीं बस इस बात का पड़ रहा है ।
कि मोहब्बत में, मोहब्बत से ख़लल पड़ रहा है ।।-
यूँ ही कट जाने को ज़िंदगी, कब इतनी आसान हुई है ।
बहुत वक़्त लगा है, तब जा कर कुछ मेहरबान हुई है ।।
किसी को क्या मालूम, कि हम पर कैसी गुज़री है ।
हमारी ज़िंदगी ही, हमारी ज़िंदगी पर, हल्कान हुई है ।।-
किस तरह उसको भूलाऊँ,
दिल को मैं कैसे समझाऊँ।
मैं सोचता रहता हूँ,
हक़ीक़त से दूर होकर,
उसे ख़्वाबों में पाऊँ।
क्या वो भी तन्हाइयों में,
मेरा नाम लेता होगा?
या सिर्फ़ मैं ही हूँ,
जो इस क़दर बेहाल हूँ।
वो मुझे ढूंढे, मुझे चाहे,
ख़ुदा करे वो वक़्त भी आए,
कब तक मैं परछाई बनकर,
यूँ ही चलता जाऊँ?
वो समझे मेरी मोहब्बत,
मेरा दर्द भी पहचाने,
कब तक ख़ुद को बहलाऊँ,
या, इंतज़ार में मिट जाऊँ?-
हर शा'यर हो मशहूर, ये जरूरी नहीं ।
जरूरी है उसका होना, पर जरूरी नहीं ।।
उसने मुड़कर जो देखा था मुझे जाते हुए ।
मैं पागल तो हो जाऊँ, पर जरूरी नहीं ।।
हर शख़्स अपनी इक एहमियत रखता है ।
सबका हो मयार एक-सा, जरूरी नहीं ।।
अब पलट कर देखता हूँ, तो सोचता हूँ ।
जरूरी था उसका जाना, ये जरूरी नहीं ।।
"मुसाफ़िर" ये ज़माना दीमक हो रहा है ।
तुम्हारा घबराना मगर यूँ, जरूरी नहीं ।।-
किसी तरह से मेरे दिल का हाल, कोई बता दो उसको ।
जितने भी हैं बाक़ी मेरे अरमान, कोई बता दो उसको ।।
उसकी चाहत में जो फिर रहा हूँ मैं दर-बदर अब यहाँ ।
मैं किस हद तक तबाह हुआ हूँ, कोई बता दो उसको ।।-
मैंने उसे ख़्वाब से गिराकर अब ज़मीं पर रख दिया है ।
जो कहता था, उसके बग़ैर मेरा गुज़ारा नहीं मुमकिन ।।-