एक अदद निर्जीव दीपक चुपचाप मुस्कुराता हुआ गहन अंधकार को अस्तित्वहीन करने की ख्वाहिश लिए जलता रहता है। बिना घबराए, बिना चिड़चिड़ाये, एकदम शांत रह कर। फिर मनुष्य तो लाखों तंत्रिकाओं से बना हुआ है। उठो लड़ो। चुपचाप लड़ो। निराशा,अभाव , मुश्किलों से लड़ो इनको समाप्त करो।