मिलूंगा एक रोज़ तुझसे,
उस रोज़ तक शायद
चेहरे पर तेरे झुर्रियां पड़ चुकी होंगी ।
दाढ़ी पर मेरी भी सफेदी चढ़ चुकी होगी ।।
मैं बदल चुका होऊंगा,
तू भी बदल चुकी होगी ।
दरमियां हमारे जो बिन बदला होगा,
वो हमारी मोहब्बत होगी ।।
मेरे इश्क़ की उस रोज़ ज़मानत होगी ।
जब तू लाल बिंदिया में आएगी और कयामत होगी ।।-
🌃Delhite
Born: August, 14
By passion : Blogger l traveller l writer
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ज़िंदगी ढूंढ ही लेगी मुझे
कहीं न कहीं
कभी न कभी
किसी मोड़ पर ।
गर जो ना हुआ ऐसा
तो मैं खुद निकलूंगा
ज़िंदगी की तलाश में,
खुद को पाने की आस में ।
सब कुछ छोड़ कर
खुद को सुकून की तरफ मोड़ कर ।।-
कभी कभी
वक्त बेरहमी में कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता,
तो कभी
वही वक्त वो रहम करता है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते ।।-
आसान नहीं है मोहब्बत...
संजीदगी में संजोए रिश्तों को, हमने बिखरते सरेआम देखा है ।
मोहब्बत के सफ़र में अक्सर "मोहब्बत" का कत्लेआम होते देखा है-
किसी की एक नसीहत याद आती है ।
जब भी कभी इश्क़ की बात आती है ।।
इश्क खुदा है गर जो दिल "खुद" ही से मिला है ।
वरना दिल का टूटना तो एक आम सिलसिला है ।।
-
सम्हाल रखा है दिल को मैने,
दिलकशी से दूर बहुत दूर कैदखाने में ।
डरता हूं
गर जो आज़ाद किया इसे
तो तोड़ देंगे लोग,
तोड़ने का रिवाज़ जो है इस ज़माने में ।।-
मुट्ठी भर ख़्वाब लेकर उड़ा था मैं, परिंदों के शहर से।
सोचा इन्हें नई उड़ान दूंगा, नाम दूंगा ।
पालूंगा पोसूंगा, नया मुक़ाम दूंगा ।।
अब जो यहां आया हूं, तो ! अलग ही मंज़र हैं ।
मुस्कराहटों के पीछे छुपाते हैं गम लोग, दिल बेजान है, बंजर हैं ।।
मिला था कल मैं, एक मुर्दे से, जो सांसें ले रहा था ।
खुद को बार बार, इंसान कह रहा था ।।
एक ही जगह पर खड़ा दौड़ रहा था, भाग रहा था ।
नींदों को निचोड़ कर पी चुका था, आंखों से जाग रहा था ।।
मैने पूछा, इतनी जहोजहद क्यों ?
क्यों परेशान हो ? किसकी तलाश है ? ।
बोला,
मैं जो मुट्ठी भर ख़्वाब लाया था साथ अपने, वो खो गए हैं,
बस, उन्हें वापस पाने की आस है ।।-
इन खामोश वादियों में लहरा के लब्ज़ों को अपने, दर्द आज़ाद करने आया हूं ।
बेदम से शिथिल पड़े "सुकून" के कानों में, आज कुछ तो आवाज़ करने आया हूं ।।-