Vikas Alien   (Vikas 'Alien')
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Joined 21 July 2019


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11 APR AT 18:38

"लोगों ने चाँद देखा, उनका ईद हुया
इक 'चाँद' मैं भी देखा, मेरा ईदी हुया...।"

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11 APR AT 0:17

"वैसे तो चांद निकलता हर शाम को,
मगर मेरा 'चांद' नाराज हुये बैठा है।"

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20 MAR AT 16:47

यह उन दिनों की बात थी
जब एक भली सी साथ थी।

ना तो बहुत आम थी
ना ही बहुत खास थी
ना तो सूरजमुखी वह थी
ना ही चंद्रमुखी सी थी।

साथ-साथ कभी ना चली
पर राह जुदा ना थी
बात तो कभी ना की
मगर हर पल साथ थी।

रास्ते थे अलग-अलग
पर मंजिले एक थी
कभी चली कभी रुकी
मगर नज़र हमी पर थी।

ज़िक्र तो कभी ना की
पर चर्चा आम था
उसकी नज़रों ने ही मुझे
बना दिया खास था।

कुछ बंदिशे परिवार की
कुछ थी मेरी बेवकूफियाँ
साथ होते होते भी
बढ़ गई ये दूरियाँ।

जब भी ज़िक्र आए तो
लगे वो आस-पास है
वह दूर तो है नहीं
पर पास हम न है।

यह उन दिनों की बात थी
जब एक भली सी साथ थी...।

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19 MAR AT 17:05

"किसी ने कहा मीनाक्षी
किसी ने कहा मृगनयनी
जिसने भी देखा इन नैनों को
सब ने कुछ न कुछ कहा
अंत में बारी आयी मेरी
मैंने कहा वह 'शून्य' है...।"

©️ विकास 'एलियन'

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17 FEB AT 0:39

"रूठने की अदायें भी, क्या गज़ब है उसकी,
लगाकर गले बोलती है, बात न करना किसी की।"

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17 JUN 2023 AT 23:30

समय के साथ-साथ समाज
लडकियों पर लगाता है बंदिशे
कभी पिता तो कभी भाई के रूप में
कभी पति और पुत्र के रूप में।

मगर लड़कियाँ भी होती है
कर्मठ, उत्साही और जीवट
वे धैर्य के साथ
बगुले की तरह पैनी नज़र गड़ाये
करती हैं मौके की तलाश।

वे न वामियों के बहकावे में आती है
न ही पोगापंथियों के पास जाती है
वे वेद के अहम् ब्रह्मास्मि को
बुद्ध के मध्यम मार्ग को
बनाती है अपना हथियार।

दीवारों पर इनको
खूटियों सरीखे लगाकर
धीरे-धीरे ही सही
फाँदती हैं
और पहुँचती हैं
एक नयी दुनिया में।

जहाँ उनका खुद का
नाम है
सम्मान है
पहचान है
अभिमान है।

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9 JUN 2023 AT 11:22

प्रिय! सुनो जरा और ध्यान रखो

कभी गुलाब की आस न करो
मृगनयनी सी बातों पर विश्वास न करो
पंखुड़ियों से कोमल अधरों पर कान न धरो
टेसू के फूल जैसे कपोलों पर बात न करो।

उलझी जुल्फों को सवारने पर ध्यान न दो
भुजंग सरीखे कटिभाग पर भाव न दो
गजगामिनी जैसे शब्दों पर ताल न दो
धवल सरीखे रंग पर तुम कान न दो।


तुम देना साथ प्रिये उसका !

जो सूरजमुखी सा तपिश लिए महकता हो
चक्षु के हर अक्ष को भरपूर समझता हो
ओष्ठ के हर कोष्ठ को पढ़ लेता हो
गाल के हर खड्ड को भर देता हो।

उलझे हुए जीवन को सुलझाता हो
मध्यांग को जो पूर्णांग कर देता हो
लड़खड़ाते चाल को संभालता हो
बेरंग जीवन को खुशियों से भरता हो।


यदि ऐसा मानुष मिल जाए प्रिये!
बेझिझक हाथ थाम लेना उसका
कदमताल करना जीवन भर
जाना चाँद के उस पार प्रिये।

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6 JUN 2023 AT 12:03

तू अद्वितीय सुंदर दुर्लभ "अपूर्वा" हो,
पर्वों में सबसे निराली फगुवा हो।
छोड़ो काना-फूसी बेमतलब बातों को
एक नयी लीक बनाने वाली तू अगुवा हो।।

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15 FEB 2021 AT 0:35

कल भी थे हम सबसे आगे,
आज तो खुँटा गाड़ेगे।
जाकर कह देना उन लोगों से,
अब हम किला बनायेंगे।।

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10 JAN 2021 AT 13:45

अभी तो चलना शुरू किया है,
उड़ान सारी बाकी है।
मेरे इरादों पर मत जाना,
अब तक की नुमाईश ही काफी है।।

हिमालय को चुम लिया है,
सागर की गहराई अब पानी है।
जर्रे-जर्रे से पुछ लो जाकर,
सबके लिए मेरी कहानी है।।

सब चलते हैं राहों पर,
हम खुद ही लीक बनाते है।
आगे जाना मेरा चाह नहीं,
मंजिल पर सबको लाते है।।

पाला है ज़िद आसमां सा
ख़्वाब तो अभी बाकी है।
ये तो अभी शुरूआत है,
अंजाम अभी बाकी है।।

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