✍️विकास भास्कर   (विकास भास्कर)
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Joined 16 October 2020


Joined 16 October 2020

फूल चमेली के, बिना सूरज, खिल नहीं सकते
बिन हवा, के कभी पत्ते, कोई हिल नहीं सकते
सुख में गप और दुःख में जप बहुत हुए नाटक
बिन ठोकर भी ठाकुर, कभी मिल नहीं सकते

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मैंने जुबान से, किसी को, बदनाम ना किया
ख़ुद ख़ातिर, कोई ऐसा, इंतज़ाम ना किया
मेरी थकान और मुस्कान भी सबूत है देखो
मैंने धूप तो कभी छाँव में आराम ना किया

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जंग छिड़ जाती है, कभी-कभी, जज़्बात की ख़ातिर
लोग करते है दरिया पार भी, मुलाक़ात की ख़ातिर
ज़ालिम बताती है ये दुनिया, एक आग के गोले को
बेचारा ढल जाता है जो सूरज एक रात की ख़ातिर

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लोग जलकर, अन्दर से, अब बग़ावत करने लगे
झूठे भूखे और चोरों की अब हिमायत करने लगे
कभी करते थे इंतज़ार, कि लेकर जायेगा चिट्ठी
वही लोग आज कबूतर की शिकायत करने लगे

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कविता:- "सब लूट रहे श्मशान को"
कवि- विकास भास्कर

धरती लूटी अम्बर भी लूटा
अब मत लूटो भगवान को
चार कंधों पर लेकर अर्थी
सब लूट रहे, श्मशान को

ऐसी चली, कि अज्ञान की आँधी
हर हाथ ज़ुल्म को, निकल पड़ा
लाज़ न आयी, हिय लोचन को
हाय ! हाय ! ज़माना बदल पड़ा

हर इंसां बैठा बिलख रहा
क्यों काट रहे, चट्टान को
लेकर झोली गली-गली में
सब लूट रहे, विद्वान को

धरती लूटी अम्बर भी लूटा
अब मत लूटो भगवान को
चार कंधों पर लेकर अर्थी
क्यों लूट रहे, श्मशान को.......।।


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Hindi Song:- "मंज़िल इस क़द्र भी देखूँ कहाँ"
( गीतकार- विकास भास्कर )
दिनांक- 08 अप्रैल 2024

मंज़िल इस क़द्र भी देखूँ कहाँ
आईना भी बताता नहीं चेहरा
कलियाँ भी है बैठी बिन भँवरा
कलियाँ भी है बैठी बिन भँवरा
आईना भी बताता नहीं चेहरा

प्यासी है जमीं प्यासा आसमाँ
आसमाँ में है रहता, चाँद नया
प्यासी है जमीं प्यासा आसमाँ
आसमाँ में है रहता, चाँद नया
मंज़िल इस क़द्र भी देखूँ कहाँ
आईना भी बताता नहीं चेहरा

इक बूँद से दरिया भरता नहीं
हमराही किसी से, डरता नहीं
इक बूँद से दरिया भरता नहीं
हमराही किसी से, डरता नहीं
है दरिया बता, तो रवानी कहाँ
आईना भी बताता नहीं चेहरा

मंज़िल इस क़द्र भी देखूँ कहाँ
आईना भी बताता नहीं चेहरा
कलियाँ भी है बैठी बिन भँवरा
कलियाँ भी है बैठी बिन भँवरा
आईना भी बताता नहीं चेहरा

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(2)
सुहानी घड़ी है
सुहाना मौसम
गर्म है ज़माना
पर दिल है नरम

सुहानी घड़ी है
सुहाना मौसम
गर्म है ज़माना
पर दिल है नरम

कभी धूप कभी छाँव
में गुज़ारे महीने
कभी धूप कभी छाँव
में गुज़ारे महीने
लगा है ख़ुदा भी
यहाँ आकर जीने

हसीनों की दुनिया में
कितने हसीनें
लगा है ख़ुदा भी
यहाँ आकर जीने

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Hindi Song:- "हसीनों की दुनिया में कितने हसीनें"

हसीनों की दुनिया में
कितने हसीनें
लगा है ख़ुदा भी
यहाँ आकर जीने

धड़कन दिल-रहबर की
रफ़्ता-रफ़्ता
न जाने क्यों इतना
अब हँसता-हँसता

धड़कन दिल-रहबर की
रफ़्ता-रफ़्ता
न जाने क्यों इतना
अब हँसता-हँसता

नशीली इन नज़रों से
लगा है पीने
लगा है ख़ुदा भी
यहाँ आकर जीने

हसीनों की दुनिया में
कितने हसीनें
लगा है ख़ुदा भी
यहाँ आकर जीने

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गर्मी ऐसी है कि पंछी छाँव-छाँव करने लगे
लोग शहर से निकल, गाँव-गाँव करने लगे
मैंने हाथ से तोड़, एक निवाला क़्या रखा
कौए छत पे आकर, काँव-काँव करने लगे

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निकला तो था दूत बन कर, उधम मचा आया
पल दो पल में बगिये को, जड़ से हिला आया
छलाँग एक ही है काफ़ी, समुद्र पार जाने को
फ़िर कहना मत कि लंका, दुबारा जला आया

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