विकास भारद्वाज 'पाठक'  
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Joined 19 April 2018


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Joined 19 April 2018

अपराध भ्रष्टाचार रोधी कौन है ?
योग्य पढ़ा-लिखा शोधी कौन है ?
मत का दान करने से पहले 'पाठक'..
ध्यान रखना कोरेक्स विरोधी कौन है ?

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साल पर हैं साल बीते राह ताकते
लौटकर आई नहीं तुम मेरे रासते
जिंदगी का शम्स है अब अस्त हो चला..
चांद तारे तोड़ो तुम गैरों के वासते

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मुंह मुझसे मोड़कर जाने वाले तेरा शुक्रिया
संघर्ष पथ पर छोड़कर जाने वाले तेरा शुक्रिया
पेट खाली था और हाथ में निवाला नहीं था..
कोई चांदी का चम्मच पास में प्याला नहीं था..
निश्चिंत था निश्चल मन में कोई जाला नहीं था..
था अंधकार चहुंओर दूर तलक उजाला नहीं था..
स्वप्न दीप को तोड़कर जाने वाले तेरा शुक्रिया..(1)..
संघर्ष पथ पर छोड़कर जाने वाले तेरा शुक्रिया
सौ बात की एक बात बस तुम इतना ध्यान रखना..
गमों से रुखसत होकर संग खुशियों की खान रखना..
अपनी जुबां पर अब हरगिज़ मेरा नाम नहीं लाना..
झूठे वादे सहानुभूति वाली बातें तमाम नहीं लाना..
अनवरत सफर में हूं मुझे दूर तलक चलते जाना है..
हौंसलों के दम पर इक दिन मंजिल को पाना है..
गमों से मेरा नाता जोड़कर जाने वाले तेरा शुक्रिया..(2)
संघर्ष पथ पर छोड़कर जाने वाले तेरा शुक्रिया...

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फूफा जी मानदान काज करवाने का क्रेडिट मांगते हैं।
लड़की से सभ्य सुशील होने का एफीडेविट मांगते हैं।
बिआह में बारात दुआरे ले जाना आसान नहीं 'पाठक'..
बराती सगल बारात जाने के लिए 'कंपोजिट' मांगते हैं।

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आंखों से बह रहे अश्क बेहिसाब..
दर्द से अब जिंदगी कराह रही है..!!

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मन ठहर जा अब विश्राम कर...तू थकता नहीं है क्या ?
चौबीसों घंटे लगा रहता है खुद की ही उधेड़बुन में..तुझे क्या मिलता है आखिर.. बस यही न..थकान...हताशा..पीड़ा..अर्रे तू इतनी आपाधापी क्यों करता है... अच्छा सुन! बेवजह मत मुरझाया कर..खुद को मत सताया कर...यह संसार मिथ्या है...सबकुछ नश्वर है..तू क्यों रमता है...तू तो बस धुत्त रह..अपनी धुन में.. तू बड़ा शक्तिशाली और समृध्दिशाली है... बस तू संतोष करना सीख ले..वो जो तू मांगता है न...वो तुझे नहीं मिलेगा...वह तेरा नहीं है.. यह संसार तेरे मुताबिक नहीं चलेगा.. मेरे ब्रो मन...तो बस तू इस संसार के मुताबिक़ चल...समस्याओं का निकलेगा हल...!!

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कबउ-कबउ मनई का दाघ बनय क परथ्य।
जरूरत परे पर इहन माघ बनय क परथ्य।
सूधे रहे पर सबदिन काम नहीं बनै 'पाठक'..
कलजुग म निकबरय घाघ बनय क परथ्य।

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जुदा होत्य तुंहसे हाल बेहाल होय जई.
आंसू ढरकिहीं आंखी लाल होय जई.
पेट भरा रही बिन खाएँन पिए 'पाठक'..
जिन्नगी म दुर्घट रोटी दाल होय जई.

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पायल बदला पांव का अंग के जेवर बदल गए.
वक्त के साथ हाव भाव संग कलेवर बदल गए.
कोमल हाथों में मेंहदी महकने से पहले 'पाठक'..
भला जाने क्यों ही सितमगर के तेवर बदल गए

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एकहाय बढ़ रही तादाद ठीक नहीं।
भुइयां बिरोधी बीज खाद ठीक नहीं।
मुहब्बत के नामे मिल रही हबइ मउत..
'पाठक' इआ लब जिहाद ठीक नहीं।

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