Vik Pathak  
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Joined 17 August 2018


Joined 17 August 2018
24 APR 2022 AT 0:21

उम्र का लिहाज ना रखा, गैरों की,

महफिलों के कदरदान हो गए,

घर अपना जोड़ ना पाए,

दुनिया की नजर में विद्वान हो गए।

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23 APR 2022 AT 10:07

दो आंख ध्यान पर,

तीसरी आंख ब्रह्मांड पर।

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21 APR 2022 AT 14:31

मस्जिद टूटी, मंदिर निकला,
जो भी दबाया, वक्त ने उगला,

मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाते हैं,

काफिर है वो लोग, जो खुदा के आगे सर झुकाते हैं,

जिस धर्म में कट्टरता, वो धर्म ही नहीं,

किसी को भी मार देना वो कर्म ही नहीं,

हाथों में तलवारें लेकर किसी का भी हाथ काटते हैं,

सड़कों में नाच कर, जशन मौत का मनाते हैं,

इंसानियत तो बस ढोंग है,

घर तोड़कर, अपना घर ही निगला है।


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21 APR 2022 AT 13:58

रब के बंदे भी कैसे हैं,

भगवान का घर तोड़कर,

खुदा का घर बनाते हैं।

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20 APR 2022 AT 14:24

किताबों की स्याही हूं,

जिंदगी के सफर की सवारी हूं,

दिन का बसेरा हूं,

रातों का राही हूं।

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20 APR 2022 AT 14:18

यारों की दोस्ती, सजती थी सुबह शाम,
महफिल बन जाती थी, चौकीदार के नाम,
गुजरा वक्त कहां लौट कर अब आना है।

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17 APR 2022 AT 11:28

दूर बहुत है, पहुंचा नहीं जाता,
पहुंच कर, फिर लोटा नहीं जाता,
हवाओं में जिसके कुदरत का खजाना है
पहाड़ों के उस पार छोटा सा घराना है,
यारों को चंबा जाना है।

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11 MAR 2022 AT 16:41

कलम रुकती नहीं, उम्मीद की आशा रखता हूं,

शब्दों को निचोड़ कर, दर्द की परिभाषा लिखता हूं,

मकान कैसे मैं बना लूं,

घर फूंक कर तमाशा देखता हूं।

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11 MAR 2022 AT 12:21

मंदिर अपवित्र हो गए,

कातिल मित्र हो गए,

अपने ही घर में शरणार्थी बन बैठे,

कैसे काफिरो के चरित्र हो गए।

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10 MAR 2022 AT 9:13

कोई आएगा तो कोई जाएगा,
सत्ता में सरकार फिर बनाएगा,
कहीं चेहरे नए भी मिलेंगे,
नाटक पुराने फिर भी चलेंगे,
आम जनता की प्यास कौन बुझाएगा,
आम आदमी फिर भी कतारों में ही नजर आएगा,
अब खुदा ही फेरबदल करेगा,
उम्मीद है! कुछ तो अच्छा करेगा,
सदियों से जनता को लूट रहे हैं,
क्या इस बार कर्ज माफ किया जाएगा,
मेरी सोच में हर वर्ग तरक्की करें,
क्या सभी को साथ लेकर चलने वाला,
दौर कभी आएगा।




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