विजय पटेल   (vihangamyoga. org)
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ईश्वर है ! मिलाऊँगा !!
Joined 22 April 2018


ईश्वर है ! मिलाऊँगा !!
Joined 22 April 2018
5 SEP 2022 AT 15:19

जीवन में सफलता प्राप्त करने का रहस्य है- व्यक्ति के अंदर विद्यमान आत्मविश्वास की पूँजी। यह आत्मविश्वास आपको अपने जीवन के सर्वोत्तम लक्ष्य तक पहुँचा सकता है, जिसके अंदर भीरुता है, आत्मबल का अभाव है, हिचक है, वह जीवन में जहाँ है, वहीं रह जायेगा। वह आगे बढ़कर जीवन के नित्य-नवीन अनुभव को प्राप्त नहीं कर सकेगा।
अनंत श्री सद्गुरु आचार्य स्वतंत्रदेव जी महाराज

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1 SEP 2022 AT 16:06

आप अपने अमूल्य जीवन-समय के महत्त्व को समझें। आप इसे व्यर्थ की बातों में न लगाकर, अपने भौतिक-विकास तथा आध्यात्मिक-विकास के लिए इसका सदुपयोग करें। इसी में आपकी बुद्धिमत्ता है, नहीं तो समय अपने पंखों पर तीव्रगति से भूत की ओर उड़ता जा रहा है। आपको पता नहीं कि आपके जीवन का इतना दिन किस प्रकार आपके हाथों से चुपके-चुपके खिसक गया। फिर तो वह स्थिति आ जाती है कि " अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत "।
अतः सावधान ! सेवा, सत्संग, साधना किसी भी परिस्थिति में न छूटे। यह संसार अनित्य, नश्वर है। वह तो प्रतिक्षण छूट रहा है और छूटता चला जायेगा। ' स्वर्वेद ' वाणी कहती है-
सेवा सद्गुरु हरि भजन, अरु सत्संग विचार।
यह संयम नित कीजये, तीन सार संसार।।
अनंत श्री सद्गुरु आचार्य स्वतंत्रदेव जी महाराज

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31 AUG 2022 AT 15:21

बुद्धिमत्ता का यह मतलब नहीं होना चाहिए कि छल-कपट के व्यवहार से हम किसी को नीचा दिखायें, अपमानित करें, अपना उल्लू सीधा करें। ऐसा करने वाले व्यक्ति को ' धूर्त ' की संज्ञा दी गई है। ऐसा व्यक्ति परमात्मा को क्या, सांसारिक उत्कर्ष भी नहीं प्राप्त कर सकता है। अतः इस प्रकार की चालाकी से सभी को बचना चाहिए। विवेकसम्मत बुद्धि ही हमें अशुभ कार्यों से बचाती है। साधन-अभ्यास के द्वारा ही सद्गुरु के ज्ञान-प्रकाश में जीवन में बुद्धिमत्ता उतर आती है। बुद्धि धर्म का मूल उत्स है।
अनंत श्री सद्गुरु आचार्य स्वतंत्रदेव जी महाराज

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29 AUG 2022 AT 15:51

इस संसार में कठिन परिश्रम से प्राप्य यानी दुर्लभ तो बहुत सारी वस्तुएँ हैं, लेकिन आदि शंकराचार्य की इस उक्ति- " किं दुर्लभं सद्गुरुरस्ति लोके " से इस लोक में एकमात्र दुर्लभ यदि कुछ है, तो वह सद्गुरु ही हैं, सिद्ध होता है। यहाँ पर सद्गुरु की दुर्लभता पर, सर्वोपरि श्रेष्ठता पर, सर्वोपरि वांछनीयता पर जोर दिया गया है। परंतु क्यों? इसलिए कि सद्गुरु का मिलना कठिन है, मिल जाने पर भी उनको पहचानना और भी कठिन है, क्योंकि उनकी वेश-भूषा, बोल-चाल सामान्य होता है। उनको परख लेना, समझ लेना कि ये ही सद्गुरु हैं, जो विश्व के सभी गुरुओं के भी गुरु हैं, जो ब्रह्म-स्वरूप हैं, जो परब्रह्म, परमात्मा से मिलाने वाले हैं, अत्यंत कठिन है।
अनंत श्री सद्गुरु आचार्य स्वतंत्रदेव जी महाराज

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27 AUG 2022 AT 15:41

जिस तरह इस मानव-शरीर का प्राप्त होना दुर्लभ है, उसी तरह सदगुरु का मिलना भी दुर्लभ है। इस देव-दुर्लभ मानव-शरीर से परम प्रभु की प्राप्ति तभी हो सकती है, जब हमें समर्थ सदगुरु की भेद-युक्ति मिल जाती है और उनकी कृपा से हम अपने जीवन के परम लक्ष्य की प्राप्ति कर पाते हैं। इसी संदर्भ में परमाराध्य स्वामी जी ने कहा है-
दुर्लभ सदगुरु मिलन है, ऊठो जागो धाय ।
सदगुरु खोजो शरण लो, दाव चूक नहिं जाय ।।
इस तरह ' दुर्लभ यह नर देह है ' के साथ-साथ ' दुर्लभ सदगुरु मिलन है ' इस आध्यात्मिक रहस्य को जानकर ही सदगुरु के संरक्षण में हम अपने जीवन को धन्य बना सकते हैं।
अनंत श्री सद्गुरु आचार्य स्वतंत्रदेव जी महाराज

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26 AUG 2022 AT 15:53

ब्रह्मविद्या विहंगम योग के प्रचार का महान कार्य समग्र विश्व में करने का सदगुरु भगवान का संकल्प है। इस परम पुनीत कार्य में तन-मन-धन से सेवा, सहयोग करना सभी शिष्य-साधक , अध्यात्म-पिपासुओं का परम कर्त्तव्य है। बिना सेवा के मात्र योगाभ्यास करना शुष्क, नीरस है, क्योंकि सेवारूपी जल से सिंचित साधना का वृक्ष पल्लवित, पुष्पित तथा फलप्रद होता है। सेवा से जी चुराने वाला शिष्य-साधक कभी भी अध्यात्म-पथ में आगे प्रगति नहीं कर सकता। इसे आप ब्रह्मवाक्य समझ कर इस पर ध्यान दें। समृद्ध, धनी व्यक्ति अपने उदारतापूर्वक धन के दान से, विद्वान व्यक्ति अपनी विद्या-बुद्धि से, शरीर से बलिष्ठ व्यक्ति अपने शरीर से और सर्वसामान्य व्यक्ति अपने मन से, चिंतन से, योजना से ब्रह्मविद्या का प्रचार-कार्य, आश्रम-निर्माणादि कार्यों में सेवा-सहयोग करते रहें।
अनंत श्री सद्गुरु आचार्य स्वतंत्रदेव जी महाराज

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25 AUG 2022 AT 15:59

आज विहंगम योग इस धरती पर प्रकट है। एक समय ऐसा भी आता है कि यह जन-सामान्य के बीच से लुप्त भी हो जाता है और यह आगे भी इसी प्रकार प्रकट रहेगा, यह कोई आवश्यक नहीं है। अतः आलस्य, प्रमाद, सभी प्रकार के अभिमान का परित्याग कर दिन-अधीन भाव से सदगुरु-शरण में रहकर सेवा-सत्संग-साधना के द्वारा अपने जीवन का उत्तरोत्तर विकास करें। यही आपका एकमात्र मुख्य कर्त्तव्य है, अन्य सभी कर्त्तव्य गौण हैं यानी दूसरे नम्बर पर हैं। आयु प्रतिपल क्षीण हो रही है। पता नहीं कब काल आकर आपको दबोच ले और आपका मनोरथ यहीं पर रखा रह जाय।
अनंत श्री सदगुरु आचार्य स्वतंत्रदेव जी महाराज

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25 JUL 2022 AT 8:23

कई जन्मों के शुभ कर्मो का पुण्य फल जब संचित होता है, तब सदगुरु की प्राप्ति होती है और सदगुरु शरणागत भक्त शिष्य का अज्ञान, शोक एवं सारी विपत्ति दूर हो जाती है ।

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26 MAY 2022 AT 7:49

अध्यात्म का सबसे प्रथम और महान तत्व है- गुरु। यही इसकी पहली किरण है और अंतिम भी। अर्थात बिना गुरु के न तो इसका प्रारंभ है, न अंत। यह तत्व जीव के साथ जन्म से ही लगा हुआ है, परंतु मनुष्य अपने अहंकार और अज्ञानता के कारण स्मृतिविहीन हो जाता है। वह इस नश्वर शरीर और संसार को ही सत्य समझ बैठता है। हमारे जीवन का अधिकांश समय इस शरीर के पोषण, रख-रखाव और इंद्रिय सुखों की प्राप्ति हेतु पदार्थ संचय करने में ही बीत जाता है। वास्तविक सत्य को जानने तथा उस दिशा में प्रयत्न करने हेतु मनुष्य के पास कोई समय शेष ही नहीं रह जाता। इस प्रकार वह स्वयं ही अपने हाथों बहुमूल्य मानव जीवन का विनाश कर डालता है।

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24 MAY 2022 AT 16:34

आत्मविज्ञान की साधना और नए दर्शन की स्थापना के संदर्भ में संपूर्ण विश्व विहंगम योग की ओर आशा लगाए हुए है। विहंगम योग की साधना पद्धति पर विश्व के अनेक देशों में वैज्ञानिक अनुसंधान हुए हैं, जिससे अदभुत परिणाम प्राप्त हुआ है। विहंगम योग ध्यान पद्धति विश्व में सर्वोत्कृष्ट सिद्ध आध्यात्मिक ध्यान पद्धति है। इस साधना के अभ्यास से मस्तिष्क की अल्फा तरंगें अत्यधिक रूप से वृद्धि को प्राप्त होती हैं। आंतरिक शांति का मार्ग ध्यान से प्रशस्त होता है। विहंगम योग साधना पद्धति से जुड़कर आज लाखों व्यक्ति अपने आध्यात्मिक जीवन का निर्माण कर रहे हैं।

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