vijender Kumar   (Vijender Nimiwal)
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Actor & writer
Joined 7 April 2018


Actor & writer
Joined 7 April 2018
25 JAN AT 21:14

मैं पंडा, पाठी, मुल्ला से क्यूँ लड़ूं!

अपनी इंसानियत से दगा क्यूँ करूँ।

पाक रूह का मसला है...

ज़ालिम हर कौम में है,

मैं अपनी रूह को गन्दा क्यूँ करूँ।

रंग,झंडा, पहनावा सियासतदारी दांव है,

मैं नफ़रत लिए गली-गली पागल क्यूँ बनूँ।

मेरा ईश्वर मेरे भीतर है...

उस ईश्वर को ज़लील क्यूँ करूँ।

कभी ना करूँ!

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23 JAN AT 20:28

विपसन्ना करो चाहे ना करो,
मंदिर मस्जिद जाओ चाहे ना जाओ
अपने व्यक्तित्व कि परत दो ना रखो।
दुनिया को दिखाने कि अलग,
और अपनी भीतरी अलग।
जो जैसे हो वैसे रहो
एक रूप, एक मन।
मन और तन हमारा कभी पीड़ित न होगा।

जो द्विआभासी होगा,
वो अपना हितकारी होगा।
दुनिया को आभास कराएगा मैं सबका हूं।
मैं चंगा हूं, मैं भला हूं,
मैं फिक्र मंद हूं, मानवता का।
असल में ऐसा होता नहीं।
कदापि वो ऐसा न होगा।।

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14 DEC 2023 AT 23:06

बहुत खामोशीयाँ है अभी,
मगर...
हसेंगे, मुस्कुरायेंगे बाद कभी,
ये बात पक्की है।

शख्ससियत हर किसी कि अपनी है,
जूनून कितना है किसमे,
ये मालूम नहीं।

दिल में लगी है हर किसी के आग..
कुछ कर दिखाने कि।
मगर ...
ये बात पक्की है।।

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11 NOV 2023 AT 10:34

हे प्रकृति! तेरी माया,
जीव-जंतु, अन्न-जल-स्वांस अद्धभुत पाया।
यहीं जगत, यहीं ब्रह्माण्ड..
मानव जिसमें अलग ही आया।
कहीं द्वेष, अंहकार, लोभ लेकर छाया
कहीं स्नेह, विनम्र, संतोषी सज्जन कि काया।
कौन देव? कौन धर्म-जाती?
इसी ने ही भांति-भांति ईश्वर बनाया।
सब है भंगूर क्षण के वासी।
सूरज, चाँद, तारे, नभ..
बस सारा जगत इसी में समाया।
वंदन करूँ, वंदन करू..
मैं इस ब्रह्मांड शून्य को करू।
चित मेरा भी ब्रह्मांड संग करूँ।।

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8 NOV 2023 AT 14:34

परिंदो को मैं जानता नहीं था
सब खूब उडारी भरते थे
पर मैं अभिभूत था केवल बाजों से,
जिनका गुणगान खूब सुनता था।
लेकिन कई थे केवल नाम के।
हाँ थे कई 'बाज' पक्के बात के।
और पता चला बाद मुझे...
ऐसे ही किसी जाबाज 'बाज' से।
रात उल्लूओं से खूब बातें करते थे,
कौओं से सांठ-गांठ रखते थे।
और चिड़िया को लगता था,
है ये अम्बर के प्रहरी।
चिड़िया को सिर्फ़ लगता ही था।

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6 NOV 2023 AT 17:11

गुण मिला तो मिला गुरु,
क्या करूँ! बाद पता चला ओढ़े ये तो सियार थैला।
चित मिला तो बनाऊ चेला,
गुरुज्ञान उसे यहीं समझायु..
रहना हमेशा एकरंगी अम्बर जैसा।
मन मिले तो मित्र बने,
हम में न है आत, पात, जात।
मैं न रहूँ अकेला, जीवन लगे निरस ढेला।।

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1 NOV 2023 AT 11:59

तू लकीर निकाल,
कोई लकीर पीटने ज़रूर आएगा।
क़लम से सच्चे शब्दों कि लकीरें लिख ना!
न पीटी जाएगी...
न मिटाई जाएगी...
न झूठलाई जायेगी।।

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25 OCT 2023 AT 15:06

चल चल तू अचल विचल

सीना तान भुजंग चल

डग डग धर अश्व चल

ह्रदय ज्वल मृगेंद्र बन

ताप उषण जहाँ शुतुर बन

वाक से जन मधुर कर

तवंग तवंग वीणा सा

चित सबका सिद्ध कर

बन बन अयस पुरुष बन

दीन बंधु का तू कवच बन

मंडली मंडली अलख जगा

नाम अमिट तू प्रखर कर।

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24 OCT 2023 AT 10:07

धर्म-अधर्म जीत-हार का पैमाना है।
जो जीता वो धर्म बन जाता है
वो राम बन जाता है।
जो हारा वो अधर्म हो जाता है
वो रावण माना जाता है।।

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5 FEB 2023 AT 11:15

बहुत से लोग, लोहे के माफिक़ होते हैं ।
मगर किस काम के, 'ज़ंग' लगे वे लोग ।।

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