चांदनी जब तुम्हे जगाए
निकल जाना अपने सफ़र पर
ओ, रात के मुसाफ़िर,
आसमान में विचरण करती इन पारिओ को
छू आना तू अपनी नजरों से।
ओ, रात के मुसाफ़िर,
गवाह बन जाना
किसी युगल प्रेम के।
ओ, रात के मुसाफ़िर,
गा लेना संग प्रेम विरह के गीत
उन जोगनियो के।
ओ, रात के मुसाफ़िर,
सुबह होते ही
बदल जाना तुम रेत के टीलो में,
निशान भी ना मिले कोई
निकल जाना फिर अपने सफ़र पर
चांदनी जब छू जाए।
ओ, रात के मुसाफ़िर!!
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