vijaya sinha   (एहसास)
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kuch kisse kuch yaade kuch khayb, baatna chahti hu ap sab k sath..
Joined 18 May 2020


kuch kisse kuch yaade kuch khayb, baatna chahti hu ap sab k sath..
Joined 18 May 2020
2 JUN 2022 AT 8:02

मोहब्बत की कोई हद नहीं होती।
एक बार जब ये किसी को अपनी हद में ले लेती हैं,
तो फिर "बेहद" होती है।

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8 APR 2022 AT 23:27

ठूँठ
नदी के किनारे खड़ा था एक ठूँठ
पत्तियां झर चुकी थी सारी
नहीं बसाया करते थे अब घोंसले
पंछी उसकी साख पे
उड़ चली थी खुशबू सारी
नही गिरा सका था उसे
तेज़ झोंका बयार का
इंतज़ार था उसे आज भी
एक आखिरी बहार का।

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26 SEP 2021 AT 0:20

अफसाना कोई गुनगुना रही है,
भूली बिसरी यादें कई
फिर से दोहरा रही है।
अंजुली में भर के इस चांदनी को
रोकना चाहती हूं मैं
ये दरारों से रीसती जा रही हैं।
ये रात जैसे
अफसाना कोई गुनगुना रही है।

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22 APR 2021 AT 5:23

अधूरे हैं मेरे अल्फाज़
अधूरा ही छोड़ा हैं
ये नगमा,
तू जो नहीं आज पास।
खुशी मेरी अधूरी हैं
अधूरे हैं सारे "एहसास"
तेरे बिना हम भी अधूरे हैं।

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22 APR 2021 AT 5:01

रूठी हुई खामोशियों से,
बोलती हुई शिकायते
ज्यादा अच्छी लगती हैं।

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13 MAR 2021 AT 3:33


चांदनी जब तुम्हे जगाए
निकल जाना अपने सफ़र पर
ओ, रात के मुसाफ़िर,
आसमान में विचरण करती इन पारिओ को
छू आना तू अपनी नजरों से।
ओ, रात के मुसाफ़िर,
गवाह बन जाना
किसी युगल प्रेम के।
ओ, रात के मुसाफ़िर,
गा लेना संग प्रेम विरह के गीत
उन जोगनियो के।
ओ, रात के मुसाफ़िर,
सुबह होते ही
बदल जाना तुम रेत के टीलो में,
निशान भी ना मिले कोई
निकल जाना फिर अपने सफ़र पर
चांदनी जब छू जाए।
ओ, रात के मुसाफ़िर!!

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13 MAR 2021 AT 3:15

बया कर जाता हैं
तेरी नाकाम मोहब्बत को,
खामोशी की जुबां
हर किसी को नसीब कहा,
तन्हा मोहब्बत का
नज़राना है,
कुबूल करना हर किसी के
बस में कहां।

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17 FEB 2021 AT 1:48

दिल की आरज़ू हुई उनका दीदार करने की
याद आए उनकी गलियों से गुजरते कदम
उस रेशमी पर्दे की ओट से देखना उसका
दो पल को वहीं ठहर जाना मेरा
बदला सा है आज रूख हवाओं का
देखो उनकी डोली में वो मेरे अरमान जा रहे है
उफ़! आज भी वो रेशमी पर्दे की ओट से देखना उसका
और वही दो पल को ठहर जाना मेरा!!

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15 FEB 2021 AT 21:36

फर्क नहीं इश्क़ और इबादत में
ज़माने को ना आशिक़ रास आए ना जियारत
रुसवा करने को बस एक ही सवाल पूछा है
बता तेरा खुदा किस मज़हब का है?

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6 FEB 2021 AT 1:43

कतरा- कतरा हुई रूह को मेरे सहेजा हैं तूने,
चरखी पर सुत की तरह लिपटे इश्क़ के धागों में बूना है तूने, ज़र्रा - ज़र्रा हो के बिखर गए थी इं फिज़ाओं में
मुद्दतों बाद पाक इश्क़ से नवाजा है तूने।

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